आपकी बात: धर्म बनाम जाति का चुनावी एजेंडा तय?

बिहार में जातीय जनगणना की रिपोर्ट आ गई है। आंकड़े जारी कर दिए गए हैं। बिहार में सबसे बड़ा सामाजिक समूह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का है, जिसकी संख्या 63 फीसदी है। अब इस पर राजनीति भी शुरू हो गई हैं। इस रिपोर्ट के जारी हाने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और लालू यादव की राजद इसका श्रेय ले रही है। वहीं, भाजपा भी समर्थन की बात कर अन्य पिछड़ा वर्ग यानि ओबीसी को सबसे ज्यादा महत्व देने वाली पार्टी होने का दावा कर रही है। इससे स्पष्ट हो गया है कि अब ओबीसी की राजनीति को ताकत मिलने वाली हैं और जाति आधारित राजनीति नए सिरे से शुरू होगी। राजनेता जातीय जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल मंडल की राजनीति को बढ़ावा देने में करेंगे और ऐसा हुआ तो ‘इंडिया’ गठबंधन को इसका फायदा मिलेगा, क्योंकि राहुल गांधी जैसे नेता पहले से ही जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। एक राजनीतिक धारणा यह भी बनी हुई है कि भाजपा और आरएसएस में उच्च जातियों का वर्चस्व है। ऐेसे में बिहार की जातीय जनगणना के ये आंकड़े ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए मुफीद हो सकते हैं। वैसे भी लालू यादव की राजद और नीतीश कुमार की जदयू पहले से ही जाति आधारित राजनीति कर रही है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि आज तक दशकीय जनगणना में केवल धर्म और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना की जाती रही है। इसमें किसी अन्य जाति की जनगणना नहीं होती हैं। देश में आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी। लेकिन पहली बार बिहार सरकार ने अलग-अलग जातियों की जनगणना कराकर जाति आधारित राजनीति को फिर हवा दे दी है। इससे पहले 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने सहयोगी भाजपा की कमंडल यानी राम मंदिर की राजनीति से अपनी कुर्सी बचाने और हिन्दुत्व के नाम पर जातीय गोलबंदी का सामना करने के लिए अन्य पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी, जो सामाजिक-आर्थिक मानदंडों पर दलितों की तुलना में बेहतर थे, लेकिन आरक्षण के लिए पर्याप्त रूप से हाशिए पर थे। अब एक बार फिर उसी तरह का फार्मूला दिखाई दे रहा है। चूंकि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले हिन्दुत्व के साथ समान नागरिक संहिता के एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। शायद इसकी काट के लिए लालू और नीतीश की जोड़ी जातीय जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल करना चाहती है। हमारा मानना है कि यदि इस पर सही ढंग से काम किया जाए तो यह भाजपा को हराने के लिए ब्रह्मास्त्र साबित हो सकता है। हालांकि भाजपा के पास नरेन्द्र मोदी जैसे ओबीसी प्रधानमंत्री हैं और वह भी पिछड़ों की राजनीति करने से चूक नहीं रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जातीय जनगणना पर टिप्पणी करते हुए हिन्दू-मुसलमान जैसे सवाल उठा दिए हैं। उन्होंने कहा है कि सबसे बड़ी आबादी गरीबों की है। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की बात याद दिलाते हुए यह भी पूछा कि क्या कांग्रेस मुसलमानों का हक कम करना चाहती है और यदि आबादी से हक तय होगी तो क्या हिन्दू आगे बढ़कर अपने सारे हक लें? हालांकि उन्होंने बिहार का नाम नहीं लिया बल्कि कांग्रेस के बहाने यह बात कही। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस हिन्दुओं को बांटने पर तुली हैं। जबकि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा है कि आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी तय होनी चाहिए। बहरहाल, जाति जनगणना के जारी होते ही जिस तरह से सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेता टिप्पणी कर रहे हैं। उससे लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव का एजेंडा तय हो गया है। ‘इंडिया’ गठबंधन ने तो इसी आधार पर अब अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुट गया है। लालू यादव ने ऐलान भी कर दिया है कि केन्द्र में ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार बनती है तो जाति जनगणना राष्ट्रीय स्तर पर होगी। वहीं भाजपा हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण में जुटी हुई है। ऐसे में यदि आगामी चुनाव धर्म बनाम जाति के आधार पर लड़ा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यही नहीं, इस साल के अंत में छत्तीसगढ़ सहित 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी यह दांव चल सकता है। चूंकि कांग्रेस ने जातीय जनगणना की बात कही है तो साफ है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में भी इस हथियार का इस्तेमाल किया जा सकता है।