आपकी बात: राहुल गांधी मामले में अदालत का फैसला विपक्ष के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित होगा?

0 संजीव वर्मा
      सर्वोच्च अदालत ने मोदी सरनेम मामले में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को बड़ी राहत दी है। अदालत ने उनकी सजा पर रोक लगा दी है। इस फैसले से न केवल राहुल गांधी बल्कि उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस के साथ विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने भी चैन की सांस ली है। इस फैसले से विपक्षी दल पूरी तरह से गदगद हैं। राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता भी बहाल हो गई है और वे अब चुनाव भी लड़ सकेंगे। दरअसल, राहुल गांधी को गुजरात की सीजीएम अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी। यदि यह सजा सर्वोच्च अदालत में भी बरकरार रहती तो राहुल गांधी के 8 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती और वे 2024 के साथ-साथ 2029 के लोकसभा चुनाव में भी हिस्सा नहीं ले पाते। इससे कांग्रेस के साथ ‘इंडिया’ गठबंधन को भी नुकसान पहुंचता, जो कांग्रेस और राहुल गांधी के इर्द-गिर्द प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरने की तैयारी कर रहा है। लेकिन सर्वोच्च अदालत के फैसले ने कांग्रेस के साथ-साथ पूरे विपक्ष को बूस्टर डोज दे दिया है। राहुल गांधी के पक्ष में जो फैसला आया है। उसके कई निहितार्थ है। यह फैसला सियासत को नई दिशा देने वाला है। पहले इस मामले की गंभीरता को समझने की जरूरत है। सीजेएम की एक अदालत ने राहुल गांधी को जिस तरह से मानहानि के मामले में अधिकतम 2 साल की सजा दी और बिजली की गति की तरह उनकी सांसदी चली गई, वह चौंकाने वाली घटना थी। यही नहीं कुछ ही दिनों में उनसे बंगला भी खाली करवा लिया गया। अब सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ट्रायल जज ने राहुल को दोषी ठहराए जाने और दो साल की अधिकतम सजा देने का विशेष कारण नहीं बताया, जबकि अपराध असंज्ञेय है। इस मामले में यदि सजा एक दिन भी कम होती, तो अयोग्यता से संबंधित प्रावधान लागू नहीं होते। अदालत ने यह भी कहा कि एक सांसद के रूप में राहुल गांधी की अयोग्यता से न सिर्फ उनके बल्कि उनके संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के अधिकार को प्रभावित किया। अदालत की यह टिप्पणी काबिल-ए-गौर है। हमारा मानना है कि सर्वोच्च अदालत ने एक नजीर पेश की है और छोटे अदालतों को इससे सीखने की जरूरत है। बहरहाल, अदालत का यह निर्णय लोकतंत्र के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस फैसले से एक बार फिर साबित हो गया कि संविधान सर्वोच्च है और कानून से ऊपर कोई भी नहीं है। इस फैसले के बाद राहुल की छवि भी एक योद्धा की तरह उभरकर सामने आई है, क्योंकि उन्होंने इस मामले में माफी मांगने से साफ इंकार कर दिया था। कई बार उन्होंने कहा था कि ‘मैं सावरकर नहीं, गांधी हूँ और गांधी माफी नहीं मांगा करते’। वे अपने बयान पर अडिग रहे। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने राहुल को भी नसीहत दी और कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि राहुल का बयान गुड टेस्ट में नहीं था। सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति को लोगों के सामने भाषण देते समय अधिक सावधान रहने की जरूरत है। वैसे यह टिप्पणी सभी राजनेताओं के लिए नसीहत है और आगे इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए। फिलहाल अदालत के फैसले से विपक्ष गदगद है और वह इसे अपने लिए मास्टर स्ट्रोक मान रहा है। निश्चित रूप से इससे विपक्षी एकता को मजबूती मिलेगी। दरअसल राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म होने के बाद सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की जोड़ी संसद में विपक्षी एकता को आगे बढ़ाने में लगे थे, अब उन्हें राहुल गांधी का भी साथ मिलेगा। अब राहुल मणिपुर हिंसा पर विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में अपनी बात रखेंगे। नि:संदेह इससे कांग्रेस और विपक्ष को लाभ होगा। इस साल के अंत में छत्तीसगढ़ सहित 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। साथ  ही अगले साल लोकसभा के चुनाव होंगे। ऐसे में राहुल की सजा पर रोक महत्वपूर्ण है। दूसरी ओर भाजपा की तरफ से कहा जा रहा था कि विपक्ष के पास प्रधानमंत्री पद के लिए कोई उम्मीदवार नहीं है। अब राहुल गांधी के रूप में एक उम्मीदवार सामने आ गया है। लालू यादव कह भी चुके हैं कि राहुल जल्द ही दूल्हे बनने वाले हैं।