आपकी बात: भूपेश स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता

0 संजीव वर्मा 
   छत्तीसगढ़ में ठीक 4 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस आलाकमान ने राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री के पद से नवाजा है। इस फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं हैं, लेकिन यह फैसला आम सहमति से लिया गया है इसलिए इसे सहजता से लिया जाना चाहिए। हालांकि लोग इसके अलग-अलग अर्थ निकल रहे हैं । लेकिन एक बात जो उभरकर सामने आई है, वह है सामूहिक नेतृत्व पर जोर। दरअसल पिछले कुछ महीनों से पार्टी की अंदरूनी कलह उभरकर सामने आ गई थी। टी.एस. सिंहदेव खुलकर अपनी नाराजगी जता रहे थे। वे यहां तक कह रहे थे कि ‘अब चुनाव लड़ने के बारे में सोचना होगा’ यानी एक तरह से वह आलाकमान को संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि राज्य सरकार उनकी उपेक्षा कर रही है और वे खुश नहीं हैं।  इसके साथ ही वह यह भी कह रहे थे कि वे कभी कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। इन सब बातों से वाकिफ आलाकमान ने शायद उन्हें ‘साधने’ के लिए उपमुख्यमंत्री पद की सौगात दी है।आलाकमान के इस फैसले से बाबा यानी सिंहदेव बहुत खुश नजर आ रहे हैं और कह भी रहे हैं कि अब ‘सबके साथ मिलकर जवाबदारी निभानी है’। वहीं, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर टी.एस. सिंहदेव  को बधाई दी  और लिखा है कि ‘हैं तैयार हम’। अब लोग मुख्यमंत्री के इस ट्वीट के राजनीतिक मायने निकालने में लगे हुए हैं कि आखिर मुख्यमंत्री किसके लिए तैयार हैं। खैर, राजनीति में इस तरह शब्दों के जाल बुने जाते हैं और उसके मायने भी ढूंढे जाते हैं। फिलहाल बाबा की पदोन्नति की बातें हो रही है। इसे लेकर लोगों के जेहन में कई तरह की बातें कौंध रही हैं। वे जानना चाहते हैं कि क्या अब कांग्रेस में सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसे चुनाव में फायदा मिलेगा और भाजपा पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? वैगरह… वैगरह…! हमारा मानना है कि इस फैसले के कई राजनीतिक मायने हैं। कांग्रेस ने बाबा की नाराजगी को दूर करने के साथ सरगुजा की 14 सीटों को ध्यान में रखकर यह निर्णय लिया है। बाबा की सरगुजा में अच्छी खासी पकड़ है और उन्होंने पिछले चुनाव में 14 की 14 सीटें कांग्रेस की झोली में डाली थीं। यह अलग बात है कि पिछले चुनाव में और अब की परिस्थिति में जमीन-आसमान का अंतर है। पिछले चुनाव में कांग्रेस जय-वीरू यानी बघेल-सिंहदेव की जोड़ी के बीच बेहतर तालमेल और रणनीति के दम पर चुनाव मैदान में उतरी थी। उस समय भाजपा कहीं टिक नहीं पाई। अब आलाकमान की यही कोशिश है कि पुराना इतिहास दोहराया जाए। शायद इसीलिए जय और वीरू की जोड़ी को फिर से मैदान में बल्लेबाजी करने के लिए उतार दी गई है। सिंहदेव भी आखरी बॉल पर छक्का लगाने के लिए जोश और जुनून के साथ मैदान में उतर गए हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है तो उसका कहना है कि यह पद राज्य के भले के लिए नहीं बल्कि महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए दिया गया है, जिसका प्रदेश की राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ . रमन सिंह ने कहा कि सिर्फ 60 दिन के लिए उपमुख्यमंत्री बनाकर बाबा को झुनझुना पकड़ा दिया गया है। भाजपा का इस प्रकार का बयान लाजमी माना जाना चाहिए।  दरअसल, वह पिछले कुछ महीनों से बाबा को साधने में लगी थी, जिसमें उसे सफलता नहीं मिली। बाबा इसे सार्वजनिक तौर पर भी कह चुके थे। अब भाजपा के हाथ से ‘बाबा’ वाला मुद्दा भी छिन गया। गाहे-बगाहे वह बाबा की उपेक्षा को मुद्दा बनाया करती थी। लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर पाएगी। बहरहाल, कांग्रेस ने सिंहदेव  को उपमुख्यमंत्री का पद देकर एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। उसने येन चुनाव के पहले सिंहदेव  का सम्मान बढ़ाकर जहां पार्टी में एकता का संदेश देने की कोशिश की है। वहीं, ढाई-ढाई साल का फार्मूला जो आए दिन सुर्खियां बनता रहा है उसे भी खत्म कर दिया। अब सत्ता और संगठन मिलकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में आगामी विधानसभा चुनाव में उतरेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है। वे प्रदेश कांग्रेस में स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता हैं। हालांकि कुछ लोग बाबा की उपमुख्यमंत्री पद की ताजपोशी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर दबाव के रूप में देख रहे हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसका चुनाव में प्रतिकूल असर भी पड़ सकता है। येन चुनाव के वक्त इस तरह की नियुक्ति से अच्छा संदेश नहीं जाता बल्कि जनता के बीच यह साफ हो जाता है कि मतभेद दूर करने के लिए इस तरह की कवायद की जाती है। हालांकि यह फैसला आपसी सहमति से लिया गया है। ऐसे में इसे सहज ढंग से लिया जाना चाहिए।