0 संजीव वर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 विपक्ष दलों के बहिष्कार के बीच नए संसद भवन को राष्ट्र को समर्पित किया और लोकसभा के सदन में पवित्र सेंगोल (राजदंड) को प्रतिष्ठित किया। इसी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध लिए। उन्होंने ठीक उसी अंदाज में नए संसद में प्रवेश किया जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद 2014 में संसद में प्रवेश किए थे। इस बार उन्होंने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक सेंगोल को साष्टांग प्रणाम किया। हालांकि एक वर्ग का कहना है कि यह सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक नहीं है। प्रधानमंत्री ने सेंगोल को कर्तव्य, सेवा और राष्ट्रपथ का प्रतीक बताते हुए कहा कि जब भी संसद की कार्यवाही शुरू होगी, यह सेंगोल सभी को प्रेरणा देगा। वैसे जितनी चर्चा नई संसद और इसकी भव्यता की नहीं हो रही है उससे ज्यादा चर्चा सेंगोल की हो रही है। जिस तरह से सेंगोल यानी राजदंड को लोकसभा में तमिल मठों के धर्माचार्यों का आशीर्वाद लेकर स्थापित किया। उसके अपने मायने हैं। दरअसल तमिलनाडु में राजदंड का बड़ा सम्मान है। ऐसे में इसका वहां बड़ा प्रभाव पड़ना भी लाजिमी हैं। लेकिन इतने मात्र से वहां की धरा भाजपा के लिए उपजाऊ हो जाएगी ऐसा पूरे विश्वास से नहीं कहा जा सकता। हालांकि भाजपा इसमें अपना सियासी फायदा जरूर देख रही है और उसे इसे रोका भी नहीं जा सकता है, क्योंकि हर राजनीतिक दल अपना भला ही चाहता है। पर सवाल यह है कि क्या प्रतीकात्मक कदमों से ऐसा किया जा सकता है। बीते कुछ समय से देखें तो प्रधानमंत्री का तमिलनाडु पर विशेष फोकस रहा है। उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र बनारस में काशी-तमिल समागम का आयोजन भी किया था। यहां बताना जरूरी है कि भाजपा सियासी तौर पर अभी भी दक्षिण भारत में मजबूत नहीं हो पाई है। ऐसे में तमिलनाडु से आए धर्माचार्य और संसद में राजदंड को स्थापित करके एक तरह से भाजपा ने तमिलनाडु की राजनीति में स्थानीय लोगों के बीच में अपनी मजबूत पैठ बनाने की कोशिश मात्र की है। हालांकि राजदंड को लेकर सियासत भी लगातार जारी है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि मोदी इस राजदंड के जरिए तमिलनाडु में राजनीतिक उद्देश्य हासिल करना चाहते हैं। वहीं, गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस ने देश की इतनी महान प्रथा और विरासत को म्यूजियम में रखकर सहारा लेकर चलने वाली छड़ी के तौर पर छोड़ दिया था। अब इसमें कितनी सच्चाई है यह तो इस पर राजनीति करने वाले और उसमें नफा-नुकसान देखने वाले लोग ही जान पाएंगे। लेकिन यह सच है कि भाजपा का दक्षिण भारत में जनाधार न के बराबर है। तमिलनाडु की बात करें तो वहां की 39 लोकसभा सीटों पर एक भी भाजपा का सांसद नहीं है। दक्षिण भारत के 5 राज्यों की 129 लोकसभा सीटों पर भाजपा के महज 29 सांसद हैं। इनमें से 25 सांसद उस कर्नाटक राज्य से हैं जहां पर हाल में हुए विधानसभा के चुनाव में उसे करारी हार का सामना करना पड़ा था। देश के बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद तमिलनाडु सबसे ज्यादा सांसदों वाला राज्य है। भाजपा दक्षिण के इसी राज्य में प्रवेश करने की तैयारी लंबे समय से कर रही है। यह अलग बात है कि उसे निराशा ही हाथ लगी है। अब कर्नाटक से सत्ता गंवाने के बाद वह ज्यादा आक्रामक ढंग से तमिलनाडु में अपनी पैठ बनाने की जुगत में है। संसद के लोकार्पण के अवसर पर जिस भव्यता और धार्मिक माहौल के साथ तमिल धर्मगुरुओं और तमिल विरासत के स्वरूप राजदंड को स्थापित किया गया है, उससे पार्टी को लगता है कि तमिलनाडु में स्थापित होने में उसे बड़ी मदद मिलेगी। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में भले ही किसी तरह की राजनीतिक बातें नहीं की। लेकिन इशारों में ही सियासी संकेत दे गए। उन्होंने अपने संबोधन में न सिर्फ अपनी सरकार के 9 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को सामने रखा, बल्कि अगले 25 साल तक के अपने विजन को भी रेखांकित करने से नहीं चूके। हालांकि इस दौरान वे विपक्ष पर सीधा हमला करने से बचते रहे। अपने 35 मिनट के भाषण में उन्होंने-
मुक्त मातृभूमि को नवीन मान चाहिए,
नवीन पर्व के लिए नवीन प्राण चाहिए।
मुक्त गीत हो रहा नवीन राग चाहिए।।
कविता सुनाकर कहा कि भारत के भविष्य को उज्जवल बनाने वाली इस कार्यशैली को भी उतना ही नवीन होना चाहिए। बहरहाल, बहिष्कार और वार-पलटवार के बीच नई संसद का शुभारंभ हो गया। लेकिन कांग्रेस को उनके अपनों ने ही मुश्किल में डाल दिया। कांग्रेसी नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम के ट्वीट धर्मदंड स्थापित हो गया, देवता पुष्प बरसाने लगे और गधे चिल्लाने लगे… के बाद कांग्रेस विरोधियों को चुटकियां लेने का मौका मिल गया। इसी तरह शशि थरूर ने भी परोक्ष रूप से सेंगोल का समर्थन करते हुए कहा कि वर्तमान के मूल्यों की पुष्टि के लिए बीते कल की स्मृति को हमें सम्मान देना चाहिए। इन टिप्पणियों से एक बार फिर कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई सामने आ गई। वैसे तो उदघाटन कार्यक्रम का 21 राजनीतिक दलों ने बहिष्कार किया था। लेकिन विरोध केवल कांग्रेस के भीतर ही सुनाई दी। जिसकी राजनीतिक गलियारों में चटखारे ले-लेकर चर्चा की जा रही है।