0 संजीव वर्मा
देश में इन दिनों सिर्फ अतीक अहमद ही चर्चा में हैं। प्रिंट, इलेक्टॉनिक से लेकर सोशल मीडिया अतीक और उनके कारनामों से अटा पड़ा है। उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में बीते शनिवार की रात 40 सेकेंड में ऐसा कुछ हुआ, जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। सौ से अधिक आपराधिक मामलों के आरोपी माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या पुलिस सुरक्षा के बीच कर दी गई। इस हत्याकांड पर पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, जो लाजिमी है। जिस तरह से चंद सेकंड के भीतर ही वारदात को अंजाम दिया गया, वह किसी योजनाबद्ध प्रथम दृष्टि में प्रतीत होता है। इस हत्याकांड ने उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर विपक्ष को हमले का मौका तो दे ही दिया है। इसके साथ ही कई सवाल भी लोगों के जेहन में तैर रहे हैं। सबसे पहला सवाल यह है कि हमलावरों को यह जानकारी कैसी पहुंची कि पुलिस अतीक-अशरफ को अस्पताल ले जा रही हैं। आखिर ऐसी गोपनीय सूचना लीक कैसे हुई? क्या पुलिस को जरा भी इल्म नहीं था कि अतीक-अशरफ पर हमला हो सकता है और उससे बड़ा सवाल तो यही है कि जब अतीक ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उत्तरप्रदेश में उसकी हत्या कराई जा सकती है, तो अतिरिक्त सुरक्षा की व्यवस्था क्यों नहीं की गई। ऐसे कई और सवाल हैं, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। हमारा भी मानना है कि आरोपी कितना भी बड़ा माफिया, डॉन या अपराधी क्यों न हो उसे कानून के दायरे में रहकर कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। जो कुछ भी हुआ वह न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है और इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। हमारा संविधान इसकी कतई आजादी नहीं देता कि आरोपी की सरेआम कोई हत्या कर दे। अपराधी को सजा देने का काम न्यायपालिका का है। यदि ऐसी स्थिति बनी रही तो समाज, राज्य व देश में अराजकता का माहौल निर्मित हो जाएगा, जो सभ्य समाज के लिए घातक है। अब जबकि अतीक-अशरफ की हत्या कर दी गई है, तो इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। राज्य की प्रमुख विपक्षी समाजवादी पार्टी ने तुरंत ट्वीट कर योगी सरकार पर निशाना साधा। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि उप्र में अपराध की पराकाष्ठा हो गई है और अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। जब पुलिस की सुरक्षा के घेरे में सरेआम गोलीबारी करके किसी की हत्या की जा सकती है तो आम जनता की सुरक्षा का क्या? वहीं, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और जल संसाधान मंत्री स्वतंत्र देव ने आग में घी डालने का काम किया। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि ‘अपने कर्मों का फल इसी जन्म में मिल जाता है’। ऐसे में सियासत गर्म होना ही था। बयानबाजी कांग्रेस-बसपा सहित सभी राजनीतिक पार्टियों की ओर से होने लगी है। जाहिर है सभी विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार ही है। ऐसे में योगी सरकार को जवाब तो देना ही होगा। हालांकि सरकार ने हत्याकांड की न्यायिक जांच कराने की घोषणा कर तीन सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया है। हमलावरों को न्यायालय ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। यदि आम जनता के नजरिए से देखा जाए तो अतीक-अशरफ के आतंक के कारण लोगों में उनके प्रति किसी प्रकार की संवेदना दिखाई नहीं दे रही है। यही सरकार के लिए राहत की बात हो सकती है। लेकिन राजनीतिक दलों को अल्पसंख्यक वोटों को भी साधना है, लिहाजा राजनीति उनकी मजबूरी है। बहरहाल, अतीक-अशरफ हत्याकांड को लेकर पुलिस की थ्योरी में जितने जवाब हैं उससे ज्यादा सवाल पैदा हो रहे हैं। हमलावरों की भी अपनी थ्योरी है। वे भी अतीक-अशरफ की तरह माफिया बनाना चाहते थे। यानी अपराध की दुनिया में आगे बढ़ने की चाहत रखते थे। पुलिस की एफआईआर में यह दर्ज भी है। ऐसा भी कहा जा रहा है कि आईएसआई के अतीक से संबंध थे। पुलिस को इसकी भनक लग गई थी। ऐसे में वह भी अतीक पर हमला करवा सकती है। ऐसी कई कहानियां है, जो आजकल धड़ल्ले से सोशल मीडिया में चल रही है। पुलिस की नाकामी के तौर पर 17 कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है। लेकिन सच यही है कि इस हत्याकांड में कई सवाल हैं, जिसका जवाब लोग ढूंढ रहे हैं। सियासत भी हो रही है। अब यह देखना होगा कि इस हत्याकांड पर से पर्दा उठ पाएगा या नहीं?
आपकी बात- अतीक हत्याकांड: पुलिस पर उठते गंभीर सवालों के बीच सियासत
