0 संजीव वर्मा
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद देश का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। पूरा विपक्ष एक नजर आ रहा है। भाजपा की बढ़ती ताकत को देखकर यह जरूरी हो गया है कि उसके मुकाबले के लिए सभी विपक्षी दल कांग्रेस की छतरी के तले एकजुट हो और कांग्रेस भी खुले दिलो दिमाग से उदारता दिखाते हुए पहल करे । फिलहाल सभी विपक्षी दल राहुल के खिलाफ कार्यवाही को लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए मोदी सरकार पर टूट पड़े हैं। लामबंद भी होने लगे हैं। लेकिन इस राजनीतिक पारा को तब तक बनाए रखना जरूरी है, जब तक वह अपने अंतिम पड़ाव तक न पहुंच जाए। इसके लिए कांग्रेस को सामने आना होगा। सभी दलों को एक करने के साथ सलाह-मशविरा कर आगे की कार्यवाही करनी होगी। संभवत: पिछले 9 सालों में यह पहली बार है, जब सभी विपक्षी दल कांग्रेस के किसी नेता के पक्ष में एक हुए हो। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव और के. चंद्रशेखर राव सरीखे नेता भी राहुल के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं। कांग्रेस से अलग हुए गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल भी राहुल के लिए आगे आएं हैं। यह राजनीतिक रूप से एक बड़ा संदेश है। लेकिन इसे सहेजकर रखने का दायित्व कांग्रेस का है। जिस तरह की परिस्थितियां बनी है, वह कांग्रेस के लिए एक अवसर के रूप में सामने आया है। इस प्रकरण के बाद राहुल का कद राजनीतिक रूप से बढ़ा है। लेकिन इसके साथ न्याय करने की जिम्मेदारी राहुल को निभानी होगी। उन्हें सभी दलों को जोड़कर रखना होगा। चूंकि अभी लोकसभा चुनाव दूर है। लिहाजा, राहुल को संयम के साथ राजनीतिक समझ दिखाने की जरूरत है। गाहे-बगाहे वे अपने बयानों के जरिए कई बार अपने सहयोगी दलों के लिए भी मुसीबतें खड़ी करते रहे हैं। ऐसे में उन्हें ऐसे किसी बयानों या टिप्पणियों से परहेज करने की जरूरत है जिससे उनके प्रति मन में कटुता पैदा हो। अभी सांसद सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेस में उन्होंने जिस तरह से सावरकर को लेकर टिप्पणी की थी, उससे उनके महत्वपूर्ण सहयोगी शिवसेना (उद्धव गुट) के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी। चूंकि सावरकर शिवसेना के लिए आदर्श पुरुष हैं। ऐसे में यह टिप्पणी उनके लिए कठिनाई पैदा करने वाली थी। वैसे सावरकर को शिवसेना या भाजपा ही नहीं पूरे महाराष्ट्र में लोग आदर्श पुरुष के रूप में पूजते हैं। ऐसे में राहुल की टिप्पणी को गैरवाजिब ही कहा जाएगा। यदि विपक्ष को साथ लेकर चलना है तो कांग्रेस को बड़ा दिल रखना होगा। वैसे भी कांग्रेस देश की मुख्य विपक्षी पार्टी है। ऐसे में पहला दायित्व उसका ही बनता है कि वह सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट करे। भाजपा आज देश की न केवल बड़ी बल्कि मजबूत पार्टी है। ऐसे में उसके खिलाफ मजबूत किलेबंदी की जरूरत है। कांग्रेस को अपने सारे मतभेदों को भुलाकर काम करना होगा। शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, फारूख अब्दुल्ला जैसे नेताओं को भी साथ में लेना होगा, जिनके संबंध सभी दलों के नेताओं से अच्छे हैं। राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही दुश्मन। इस सूत्र वाक्य के साथ आगे बढ़कर सभी दलों को साथ में लेना होगा। लोग आज राहुल गांधी के बारे में जो भी सोच रखें, लेकिन अपराधिक मानहानि मामले में जिस तरह से 26 घंटे के भीतर आनन-फानन में उनकी सांसद की सदस्यता खत्म की गई, उससे आम जनता को भी लगने लगा है कि राहुल के साथ नाइंसाफी हुई है। यह राजनीति से प्रेरित निर्णय था। चूंकि सत्तारूढ़ भाजपा सहित कई दलों के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने कई तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां की है, लेकिन उन्हें ऐसी कोई सजा नहीं मिली है। ऐसी सोच रखने वाले केवल पार्टी विशेष के लोग ही नहीं होते बल्कि स्थिति-परिस्थिति को समझने वाले ऐसे वर्ग भी है, जो राजनीति से तो वास्ता नहीं रखते, लेकिन चीजों को बखूबी समझते हैं। ऐसे में कांग्रेस को विपक्ष को साथ लेकर आम जनता के बीच जाना होगा। लेकिन इस घटना को करीब एक सप्ताह होने को है। अभी उस तरह का अभियान नहीं दिख रहा है, जैसा दिखना चाहिए। चूंकि लोग किसी घटना को चंद दिनों में ही भूल जाते हैं। ऐसे में इस मुद्दे को लोगों के बीच पूरे तथ्य के साथ रखकर बताना होगा कि भाजपा लोकतंत्र की कितनी हिमायती हैं। जब तक विपक्ष एकजुट नहीं होगा। भाजपा की ताकत बढ़ती रहेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। भाजपा को चुनौती देने के लिए पूरे विपक्ष को कांग्रेस की छतरी के नीचे आना होगा और इसके लिए कांग्रेस को खुले दिल से कुछ वैचारिक या मुद्दे आधारित मतभेद को परे रखकर सबका स्वागत करना होगा।