आपकी बात:  राहुल के बयान में अडानी मुद्दे की काट ढूंढती भाजपा

0 संजीव वर्मा
   संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण के बीते 6 दिन की कार्यवाही राहुल बनाम अडानी के मुद्दे पर हंगामे की भेंट चढ़ चुकी है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने गतिरोध दूर करने के लिए अलग-अलग दलों के नेताओं के साथ बैठकें की, लेकिन गतिरोध जस का तस बना हुआ है। इस बीच, राहुल गांधी के लंदन में दिए गए भाषण के मामले में जंग के बीच दिल्ली पुलिस की कार्यवाही ने पक्ष-विपक्ष के बीच तल्खी को और बढ़ा दिया है। राहुल गांधी से पूछताछ के मामले में कांग्रेसी आक्रामक हैं , तो सरकार की तरफ से बार-बार राहुल मामले में आक्रामक रुख जारी रखने की बात कही जा रही है। ऐसे में इस हफ्ते भी दोनों पक्षों के बीच सुलह-सफाई के बदले तकरार और तेज होने के संकेत मिल रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। संसद देश की सर्वोच्च पंचायत है, जहां देश के विकास का रोडमैप तैयार किया जाता है। देश के लिए नीतियां बनाई जाती है। ऐसे में इसे यूं ही हंगामे में झोंकना उचित नहीं है। संसद में एक दिन की कार्यवाही में ही लाखों रुपए खर्च होते हैं। ऐसे में देश के माननीयों को चाहिए कि वह अपना हठ और अहम किनारे कर देशहित में सुलह-सफाई कर कार्यवाही को अनवरत चलने दे। वैसे यह पहली बार नहीं है कि संसद की कार्यवाही ठप है। लेकिन इस बार जो हो रहा है वह देश हित से ज्यादा व्यक्ति हित हो गया है। अडानी बनाम राहुल के इर्द-गिर्द सारा मामला सिमट कर रह गया है। इससे देश की ज्वलंत समस्याओं और मुद्दों से ध्यान हट गया है। लगता है यह भाजपा की रणनीति का ही हिस्सा है और वह उसमें सफल होती भी दिख रही है। संसद के सफल संचालन का दायित्व सत्ता पक्ष का होता है, लेकिन यहां सत्तापक्ष ही हो-हल्ला और हंगामा करने पर उतारू है। वह विपक्ष को एक ऐसे मुद्दे पर उलझा रखा है जो उसके गले की फांस बन चुका है। उसे न उगलते बन रहा है और न ही निगलते। राहुल गांधी के देश का अपमान करने वाले कथित बयान को लेकर सत्तापक्ष कुछ ज्यादा ही उग्र है। वह राहुल से माफी की मांग कर रहा है। वहीं, विपक्ष अडानी समूह के करोड़ों रुपए के घोटालों  की संयुक्त संसदीय  समिति (जेपीसी) से जांच कराने की मांग पर अड़ा है। यह दोनों ऐसी मांग है जो एक दूसरे को उलझा कर रखा है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जेपीसी जांच से क्या हासिल हो पाएगा। इससे पहले कई मामलों की जेपीसी जांच हो चुकी है। उससे क्या हासिल हुआ है, सभी जानते हैं। जबकि अडानी समूह की जांच के लिए सर्वोच्च अदालत की एक कमेटी बनी है, जिनमें दो रिटायर्ड जज हैं। सेबी अलग से जांच कर रही है। ऐसे में जेपीसी की जांच से कोई बड़ा खुलासा हो पाएगा ऐसा नहीं लगता। विपक्ष को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इसके उलट सत्तापक्ष राहुल गांधी के बयान को इसकी काट के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। इन सबके बीच जनता के मुद्दे गायब हो चुके हैं। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था जैसे गंभीर सवाल पीछे छूट गए हैं। आज लोगों के सामने महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है। पिछले एक-दो महीने तक थमी रही महंगाई फिर से केंद्रीय बैंक की तय सीमा से ऊपर चली गई है। लगातार दो महीने से महंगाई दर 6 फीसदी से ऊपर है। केंद्र सरकार ने अगले साल के बजट में मनरेगा से लेकर खाद्य सुरक्षा तक के बजट में कटौती की है। केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग निरंतर जारी है। इससे सभी विपक्षी दल परेशान हैं। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया गया है। अब बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से लेकर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी कविता के अलावा कई नेताओं पर तलवार लटकी हुई है। विपक्ष को यह दिख नहीं रहा है या फिर वह जानबूझकर इसकी अनदेखी कर रहा है। एक मात्र अडानी मुद्दे के पीछे सारे मुद्दे गौण हो गए हैं। सत्तापक्ष केवल राहुल के कथित बयान की आड़ में अपनी नाकामी छिपाने की कोशिश कर रहा है। अब यह देखने वाली बात होगी कि वह इसमें सफल रहता है या असफल।