0 संजीव वर्मा
कांग्रेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन के ठीक चार दिन पहले प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने कांग्रेस नेताओं के घरों पर छापेमारी कर राजनीतिक भूचाल ला दिया है। इस छापेमारी में कई बड़े नेता घेरे में है। कांग्रेस इसे जहां भाजपा की बौखलाहट बता रही है तो भाजपा इसे सबूतों के आधार पर की जा रही कार्यवाही बताने में लगी हुई है। लेकिन सच्चाई क्या है, यह देश-प्रदेश की जनता भली-भांति जान और समझ रही है। ईडी के अधिकारियों का कहना है कि कोयला लेवी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस नेताओं से जुड़े परिसरों सहित प्रदेश के कई स्थानों पर छापेमारी की जा रही है। यह छापेमारी राजधानी रायपुर में 24 से 26 फरवरी तक कांग्रेस के तीन दिवसीय पूर्ण महाधिवेशन से पहले हुई है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस महाधिवेशन पहली बार हो रहा है । जिन नेताओं के परिसरों पर छापेमारी की जा रही है। उनमें विधायक देवेन्द्र यादव और चंद्रदेव राय के अलावा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कोषाध्यक्ष रामगोपाल अग्रवाल, भवन एवं अन्य निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुशील सन्नी अग्रवाल और पार्टी के प्रवक्ता आर.पी. सिंह के परिसर भी शामिल हैं। छापेमारी को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से जोड़ते हुए कहा कि केंद्र सरकार इससे घबराई हुई है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अंग्रेजों से नहीं डरी तो इनसे क्या डरेगी। वहीं, कांग्रेस की प्रदेश इकाई के संचार विभाग के प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि भाजपा रायपुर में होने वाले कांग्रेस के 85 वें पूर्ण महाधिवेशन से डरी हुई है और इसे बाधित करने के लिए केंद्रीय एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है। उधर, भाजपा नेताओं का कहना है कि यहां सबूतों के आधार पर कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरूण साव और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि ईडी की कार्यवाही में नगद, सोना, डायमंड संपत्ति सब कुछ मिल रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस भ्रष्टाचारियों के साथ क्यों खड़ी है? लेकिन छापे की टाइमिंग को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं । सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ईडी कांग्रेस के महाधिवेशन के ठीक पहले कार्रवाई कर क्या साबित करना चाहती है। राज्य में बड़े स्तर पर कांग्रेस नेताओं के घर इस तरह की छापेमारी से कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यह राजनीतिक दिशा की ओर इशारा कर रहा है। यहां यह बताना लाजिमी है कि इस साल ऐसा पहली बार है कि ईडी ने सीधे किसी कांग्रेसी नेता के घर धावा बोला है। यह भी सही है कि ईडी, आईटी और सीबीआई की कार्यवाही सिर्फ विपक्ष से जुड़े नेताओं के यहां ही हो रही है। अब तक कोई भी भाजपा नेता के यहां ऐसी कार्यवाही की सूचना नहीं है। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद ईडी के जाल में विपक्षी दलों के यहां छापेमारी की गई है। उनमें सर्वाधिक कांग्रेस के 24 हैं। इसके बाद टीएमसी 19, एनसीपी 11, शिवसेना 8, डीएम के 6 बीजद 6, राजद 5, बीएसपी 5, एसपी 5, टीडीपी 5, इनेलो 3 के अलावा छोटे- छोटे क्षेत्रीय दल भी ईडी के घेरे में आ चुके हैं। ऐसी एकपक्षीय कार्रवाई से केन्द्रीय एजेंसियों की साख और उनकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। क्या सत्तापक्ष के लोग दूध के धुले हुए हैं। मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में किसी भाजपा नेता के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई। छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चिटफंड कंपनी के घोटालों को लेकर केंद्र सरकार को ईडी की जांच के लिए पत्र लिख चुके हैं, लेकिन उनके पत्र पर गौर ही नहीं किया गया। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे। लेकिन यह दुर्भाग्य है कि अपने देश में सरकारी एजेंसियां ‘तोते’ की तरह काम करती हैं। यह स्थिति लंबे समय से चल रही है। इस समय तो ‘सिर के उपर से पानी’ बहने लगा है। लेकिन केंद्र सरकार चुप है। ईडी भी चुप है। केवल कांग्रेस और विपक्षी दल चिल्ला-चिल्ला कर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं कि सरकारी एजेंसियां सरकार की भोंपू है। हमारा मानना है कि जितनी भी सरकारी एजेंसियां हैं उन्हें सियासी मुद्दों में नहीं उलझना चाहिए। राज्य में जो कुछ भी चल रहा है वह प्रदेश के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सच क्या है-गलत क्या है। यह देश की जनता देख-समझ रही है।