आपकी बात: चमत्कारों में सियासी रंग और महंत धीरेन्द्र 

0 संजीव वर्मा 
      देश में इन दिनों बागेश्वर धाम के महंत पं. धीरेन्द्र शास्त्री चर्चा में हैं। उन पर अंधविश्वास फैलाने को लेकर उपजा विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। शास्त्री को लेकर शंकराचार्य भी एक दूसरे के आमने-सामने आ गए हैं। जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद महाराज जहां शास्त्री जी के समर्थन में आ गए हैं , तो वहीं दूसरे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने चुनौती दे दी है कि वे जोशीमठ की दरारें को भर कर दिखाएं। इसमें अब राजनीति भी हावी हो गई है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि चमत्कार दिखाना जादूगरों का काम होता है, संतों का नहीं। वहीं, रायपुर के सांसद सुनील सोनी ने इसे एक अलग मोड़ देने की कोशिश की है। उन्होंने इसे धर्मांतरण से जोड़ते हुए कहा है कि धीरेन्द्र शास्त्री धर्मांतरण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। इस मामले में पत्रकार भी बंटे हुए नजर आ रहे हैं। इस प्रकार से धीरेन्द्र शास्त्री इन दिनों सभी की जुबान पर हैं। टीवी में हेडलाइन और अखबारों में उनके चमत्कार के किस्से सुर्खियों के साथ विवादों में हैं। अब ये चमत्कार धर्म की जगह सियासी रंग में आ गए हैं। हर वर्ग पं. धीरेन्द्र शास्त्री के किस्से को जानना-समझना चाह रहा हैं। उनके चमत्कार को लेकर राष्ट्रीय चैनलों ने भी बड़ा कवरेज  किया। दरअसल, यह सारा मामला नागपुर से शुरू हुआ था, जहां बागेश्वर धाम के महंत पं. धीरेन्द्र शास्त्री पर अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति ने अंधविश्वास को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। दावा किया गया था कि इस चुनौती के चलते शास्त्री ने अपने कार्यक्रम को जल्दी खत्म कर दिया। दरअसल धीरेन्द्र शास्त्री के आयोजन को समागम कहा जाता है। यह वैसे तो आम धार्मिक बाबाओं की तरह ही होते हैं, लेकिन इसमें शास्त्री द्वारा जो पर्चा बनाया गया है, वह चर्चा का विषय है। धीरेन्द्र शास्त्री का दावा है कि वे बिना बात किए ही भक्तों की समस्याओं को पहचान जाते हैं। रायपुर में भी उनका समागम चला, जिसमें कई तरह के दावे-प्रतिदावे किए गए। मध्यप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में भी यह चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री पीसी शर्मा ने शास्त्री का समर्थन करते हुए विवाद को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा की साजिश बताया है। वहीं, मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री उषा ठाकुर ने धीरेन्द्र शास्त्री के विरोधियों को राष्ट्रद्रोही करार दिया है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह ने कहा कि कौन है यह धीरेन्द्र शास्त्री? मैं नहीं जानता। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ गरीबों, आम व्यक्तियों और जरूरतमंदों की मदद करने वाले शास्त्री को ही प्रणाम करते हैं। फर्जी शास्त्रियों के लिए उनके मन कोई जगह नहीं है। हमारा मानना है कि समाज में अंध विश्वास और चमत्कार के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अंधविश्वास के चलते कई अनहोनी घटनाएं घट चुकी है। ऐसे में इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है। हालांकि देश में अंध विश्वास को लेकर कोई विशेष केन्द्रीय कानून नहीं है। 2016 में लोकसभा में डायन-शिकार निवारण विधेयक लाया गया था लेकिन यह पारित नहीं हुआ था। हालांकि, देश में अलग-अलग कानून है, जिसके जरिए इस पर रोक लगाने का काम हो सकता है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ सहित बिहार, झारखंड, ओडि़शा, राजस्थान, असम, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अंधविश्वास को रोकने का कानून बना है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि जादू-टोने के चलते पिछले दस साल में एक हजार से अधिक लोगों की मौत हुई है। बहरहाल, अंधविश्वास, चमत्कार और आस्था में अंतर है। भगवान के प्रति आस्था से व्यक्ति मजबूत होता है, लेकिन अगर कोई भगवान के नाम पर चमत्कार का दावा करे तो वह भ्रमित करने जैसा है। जबकि अंधविश्वास सच्चाई और वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं। अंधविश्वास में व्यक्ति अलौकिक शक्तियों में विश्वास करता है, जो  प्राकृतिक  नियमों की पुष्टि नहीं करता  और ना ही ब्रह्मांड की वैज्ञानिक समझ रखता है। ऐसे में अंधविश्वास और चमत्कारों में उलझने के बजाय मन, मस्तिष्क, सोच एवं मनोविज्ञान को मजबूत करने की जरूरत है।