नई दिल्ली. बुनियादी ढांचा क्षेत्र की १५० करोड़ रुपए या इससे अधिक के खर्च वाली ४०३ परियोजनाओं की लागत में तय अनुमान से ४.०५ लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी मिली है। देरी और अन्य कारणों की वजह से इन परियोजनाओं की लागत बढ़ी है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय १५० करोड़ रुपए या इससे अधिक लागत वाली बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाओं की निगरानी करता है। मंत्रालय ने कहा कि इस तरह की १,६८६ परियोजनाओं में से ५३० परियोजनाएं देरी से चल रही हैं, जबकि ४०३ परियोजनाओं की लागत बढ़ी है।
मंत्रालय ने मार्च-२०२० की रिपोर्ट में कहा गया है, ”इन १,६८६ परियोजनाओं के क्रियान्वयन की मूल लागत २०,६६,७७१.९४ करोड़ रुपए थी, जिसके बढ़कर २४,७१,९४७.६६ करोड़ रुपए पर पहुंच जाने का अनुमान है। इससे पता चलता है कि इनकी लागत मूल लागत की तुलना में १९.६० प्रतिशत यानी ४,०५,१७५.७२ करोड़ रुपए बढ़ी है।”
रिपोर्ट के अनुसार, मार्च २०२०, तक इन परियोजनाओं पर ११,२०,६९६.१६ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं, जो कुल अनुमानित लागत का ४५.३४ प्रतिशत है। हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि यदि परियोजनाओं के पूरा होने की हालिया समयसीमा के हिसाब से देखें, तो देरी से चल रही परियोजनाओं की संख्या कम होकर ४५२ पर आ जाएगी।
मंत्रालय ने कहा कि देरी से चल रही ५३० परियोजनाओं में १५५ एक से १२ महीने, ११४ परियोजनाएं १३ से २४ महीने, १४८ परियोजनाएं २५ से ६० महीने और ११३ परियोजनाएं ६१ महीने या अधिक की देरी में चल रही हैं। इन ५५२ परियोजनाओं की देरी का औसत ४१.१६ महीने है।
इन परियोजनाओं में देरी के कारणों में भूमि अधिग्रहण में विलंब, पर्यावरण व वन विभाग की मंजूरियां मिलने में देरी और बुनियादी संरचना की कमी प्रमुख हैं। इनके अलावा परियोजना का वित्तपोषण, विस्तृत अभियांत्रिकी को मूर्त रूप दिये जाने में विलंब, परियोजनाओं की संभावनाओं में बदलाव, निविदा प्रक्रिया में देरी, ठेके देने व उपकरण मंगाने में देरी, कानूनी व अन्य दिक्कतें, अप्रत्याशित भू-परिवर्तन आदि जैसे कारक भी देरी के लिए जिम्मेदार हैं।