भोलेनाथ की बात करें तो शास्त्रों में इनके एक नहीं बल्कि कई स्वरूपों का वर्णन पढ़ने सुनने को मिलता है। यही कारण है इन्हें कई नामों से जाना जाता है। समाज में इनके कुछ नाम तो काफी प्रचलित हैं, जैसे महादेव, महाकाल, शंकर, शिव शंभू आदि। परंतु आपको बता दें कि इनमें से कुछ ऐसे भी नाम हैं जिनसे आज भी कई शिव भक्त अंजान है। आप सही समझ रहे हैं श्रावण माह की मासिक शिवरात्रि के इस खास मौके पर हम आपको बताने वालें हैं शिव जी को अवधूत कहे जाने का रहस्य। शास्त्रों में कईख जगह इन्हें इस नाम से पुकारा गया है। मगर बहुत ही कम लोग होंगे जिन्होंने इनका ये नाम सुना होगा। तो चलिए देर न करते हुए जानते हैं अवधूत नाम तथा अवतार के बारे में कि भगवना शंकर ने ये अवतार क्यों और किसलिए लिया था।
धर्म ग्रंथों की बात करें तो भगवान शंकर ने अवधूत नामक अवतार अंहकार में चूर हुए स्वर्ग के राजा इंद्रदेव के लिए लिया था। दरअसल शास्त्रों आदि में इससे जुड़े एक कथा है जिसके अनुसार एक बार की बात है कि इंद्र बृहस्पति तथा अन्य देवताओं को साथ लेकर भगवान शंकर जी के दर्शनों के लिए कैलाश पर्वत जाने के लिए निकला तो जब भगवान शंकर को इस बात का पता चला तो वो उनकी परीक्षा लेने के लिए अवधूत रूप धारण कर, इंद्र देव के मार्ग में आ गए।
जिसके बाद इंद्र ने बार-बार उनका परिचय पूछा, मगर भोलेनाथ अवधूत रूप में कुछ नहीं बोले और मौन रहे। इस बात पर इंद्र देव को क्रोध आ गया जिसके बाद उसने अपना वज्र उन पर छोड़ना चाहा, परंतु उसका हाथ स्तंभित हो गया। ये दृश्य देखकर बृहस्पति देव ने शिव जी को पहचान उनकी स्तुति आरंभ कर दी। कहा जाता है बृहस्पति देव की इस स्तुति से प्रसन्न होकर शिव जी ने क्षमा कर दिया था। इस मान्यता के अनुसार इसके बाद ही भगवान शंकर को अवधूत के नाम से जाना जाने लगा।
तो वहीं इससे जुड़ी अन्य मान्यता के मुताबिक जब देवी सती ने अपने पिता के अपमान से आहत होकर यज्ञ मेंक कूदकर अपने देह भस्म ली थी तब उनके वियोग में भगवान शंकरने अवधूत रूप धारण कर लिया था। कथाओं के अनुसार वे हर समय वियोग में या समाधी ने लीन रहने लगे थे। इतना ही नहीं साधारण मुनष्यों की तरह दुखी होकर परमहंस योगिनियों के समान नग्न शरीर, सर्वांग में भस्म मले आदि लगाकर संसार में भ्रमण करते रहते थे, जिस कारण उन्हें अवधत कहा जाने लगा।