आपकी बात: नीतिश ने दिया धीरे से जोर का झटका

O संजीव वर्मा
भारतीय जनता पार्टी को बिहार में जोर का झटका धीरे से लगा है। जदयू ने जिस तरह से भाजपा को दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंका  उस पर ‘जैसे को तैसे’ की कहावत  चरितार्थ होती  है। भाजपा नेता सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि बिहारी बाबू कुछ ऐसा कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने कर दिखाया। दरअसल, महाराष्ट्र में बाजी मारने के बाद भाजपा और उनके कर्ताधर्ता सातवें आसमान में उड़ रहे थे। उनकी नजर बिहार पर टिकी थी और वे महाराष्ट्र की तर्ज पर बिहार में भी कब्जा करने की योजना पर काम कर रहे थे। लेकिन कहते हैं कि ‘शेर को सवा शेर’ मिलता है और नीतीश कुमार के रूप में उन्हें सवा शेर मिल ही गया, जिन्होंने भाजपा को संभलने का मौका ही नहीं दिया और एक झटके में आठवी बार मुख्यमंत्री बन गए। दरअसल नीतीश कुमार भाजपा से अलग होकर बिहार में महाराष्ट्र जैसे हालात को टालने में सफल रहे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा ने हाल ही में बिहार दौरे के समय कहा था कि क्षेत्रीय दलों का कोई भविष्य नहीं है और वो सफर नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि देश में केवल भाजपा की मौजूद रहेगी। नड्डा के इस बयान के बाद न केवल नीतीश कुमार के कान खड़े हो गए बल्कि वे इसकी काट भी ढूंढने लगे और मौका मिलते ही हिसाब बराबर कर लिया। वैसे नीतीश कुमार की शिकायत भी थी कि भाजपा अपने सहयोगियों को धीरे-धीरे खत्म कर रही है। यह सच भी है। भाजपा ने पंजाब में अकाली दल के साथ जो किया वह सबके सामने है। आज वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा कई सालों तक साथ रहे। आज भाजपा योजनाबद्ध ढंग से शिवसेना में दरार पैदा कर उसे कमजोर करने में तुली है। उसमें एकनाथ शिंदे जैसे लोग उसकी मदद कर रहे हैं। लेकिन बिहार में उसकी उम्मीदों पर नीतीश ने पानी फेर दिया है। अब बिहार में उसके सामने एक विकट चुनौती है। बिहार वही राज्य है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में एनडीए को 40 से 39 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में उसे बिहार में अपनी साख बचाए रखने की बड़ी चुनौती है। वहां की राजनीति सामाजिक न्याय पर आधारित रही है। विकास समेत अन्य तमाम मुद्दों पर सामाजिक न्याय की राजनीति भारी रही है। ऐसे में भाजपा के सामने सामाजिक समीकरणों को साधने हिमालय लांघने जैसा होगा। चूंकि, राजद मुस्लिम और यादव मतदाताओं पर एक बड़ा आधार रखती है। नीतीश कुमार का चेहरा गैर-यादव और पिछड़ों को जोडऩे में भाजपा को मदद करता था। अब नीतीश राजद के साथ है तो फिर दोनों दलों का सामाजिक आधार बड़ा हो जाएगा। ऐसे में भाजपा के आगे चुनौती होगी कि कैसे वह बिहार में सामाजिक समीकरणों को साधेगी? इसका सीधा असर देश के अन्य राज्यों खासकर उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में देखने को जरूर मिलेगा, जहां कुर्मी और कुशवाहा मतदाता बड़ी संख्या में है। नीतीश कुमार स्वयं कुर्मी समुदाय से है और उन्हें कुर्मियों और कुशवाहों का हमेशा समर्थन मिलता रहा है। साथ ही अधिकांश पिछड़ी जातियों के बीच भी उनकी लोकप्रियता है। यह भाजपा के लिए चुभने वाली बात है। बहरहाल,  नीतीश कुमार के इस खेला से भाजपा सकपका गई है। हालांकि उनके नेता लाख सफाई दे कि उन्हें इस बात का आभास था कि नीतीश कुमार उनका साथ छोड़ने वाले हैं। यह कहकर वे स्वयं को तसल्ली भले दे सकते हैं। लेकिन, इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि पूरी भाजपा नीतीश की राजनीतिक गुगली से सीधे क्लीन बोल्ड हो गई है। अब जबकि पूरा विपक्ष नीतीश के इस कदम से खुश हैं तो देश की जनता भी नीतीश कुमार की  राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका देख रही है। चूंकि नीतीश कुमार की छवि साफ सुथरी है और उन्हें सुशासन बाबू के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में वह विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के एक विकल्प हो सकते हैं। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। ममता बनर्जी, शरद पवार और अरविंद केजरीवाल भी दावेदार हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार हैं। यदि नरेंद्र मोदी को टक्कर देना है तो सभी को एकजुट होना होगा। वैसे भी कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता का कोई औचित्य नहीं है, लिहाजा सभी विपक्षी पार्टियों को कांग्रेस के बैनर तले आकर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का मुकाबला करना होगा। यह समय की मांग भी है।