
O संजीव वर्मा
देश में इन दिनों राजनेताओं के बड़बोले बयान चर्चा में है। एक ओर कांग्रेस के अधीर ‘धीर’ नहीं धर पा रहे हैं, तो दूसरी ओर भाजपा की स्मृति का अमर्यादित व्यवहार राजनीति के गिरते स्तर को दर्शाने के लिए काफी है। इस बीच, संसद के चल रहे मानसून सत्र का आधा समय हंगामे की भेंट गया है। पिछले हफ्ते राज्यसभा में तीन दिनों में 23 सांसदों का निलंबन हो गया, जो एक इतिहास है। लोकसभा और राज्यसभा से विपक्ष के 27 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है। निश्चित रूप से यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। लोकतंत्र में जय-पराजय, कहा-सुनी एक सामान्य बात है। लेकिन जिस तरह की राजनीति अभी चल रही है, उसे किसी भी मायने में उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस मामले में सभी पार्टियों के नेता ‘एक ही थाली के चट्टे-बट्टे’ हैं। इस समय तो कौन कितना नीचे गिर सकता है, इस पर होड़ लगी हुई है। दरअसल, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पार्टी के एक प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रपति के लिए ‘राष्ट्रपत्नी’ शब्द का इस्तेमाल किया था। इसे भाजपा ने मुद्दा बनाया और संसद में हंगामा किया। भाजपा इस मामले में सोनिया गांधी से माफी मांगने की बात कहने लगी। हालांकि अधीर रंजन चौधरी ने पत्र-लिखकर माफी मांग ली। उन्होंने संसद में भी सफाई दी कि हिन्दी कम जानने की वजह से गलती हुई। वे सपने में भी राष्ट्रपति के लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। इस बीच, लोकसभा में हंगामे के बीच मंत्री स्मृति ईरानी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच नोक-झोंक से नया राजनीतिक संग्राम शुरू हो गया। कांग्रेस ने स्मृति ईरानी पर सोनिया गांधी के साथ अमर्यादित व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से माफी मांगने की मांग की। कांग्रेस का आरोप है कि लोकसभा में सोनिया गांधी जब अधीर रंजन चौधरी की टिप्पणी के मामले में खुद को घसीटे जाने पर रमा देवी से बात कर रही थी, तब स्मृति ईरानी ने उन्हें घेरकर अपमानजनक लहजे में अपशब्द कहे। ईरानी ने चिल्लाकर कहा, ‘आप मुझे नहीं जानती है, मैं कौन हूँ’ अब कौन कितना सच है। यह तो वहीं लोग जाने, लेकिन देश की सर्वोच्च पंचायत में इस तरह का व्यवहार या कहें ‘तमाशा’ गैरवाजिब है। कांग्रेस ने इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से दखल देने का आग्रह किया है। वैसे नेताओं के बड़बोले बयान कोई पहली बार सामने नहीं आए हैं। कांग्रेस में तो मणिशंकर अय्यर से लेकर चौधरी तक कई नाम हैं जिसके चलते पार्टी को कई मौकों पर बैकफुट पर आना पड़ा है। इस मुद्दे पर कांग्रेस एक बार फिर बैकफुट पर है। कांग्रेस उनका बचाव जरूर कर रही है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि आखिर चौधरी से इस तरह की गलती बार-बार क्यों होती है। हाल के दिनों में कांग्रेस ने महंगाई, बेरोजगारी और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग जैसे मुद्दों को लेकर जो माहौल बनाया था। उसमें चौधरी के एक आपत्तिजनक शब्द ने पानी फेर दिया। वैसे भी राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने आदिवासी महिला प्रत्याशी पर दांव लगाकर विपक्ष को मुश्किल में डाल दिया था। अब आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए वह इसके प्रचार में भी जुटी हुई है। चौधरी के बयान से उसके प्रचार को और भी ताकत मिल गई है। सामने गुजरात के चुनाव हैं, वहां 40 ऐसी सीटें हैं, जिनमें आदिवासी मतदाता निर्णायक भूमिका में है। उधर, भाजपा में भी बड़बोले नेताओं की कमी नहीं हैं। इस समय स्मृति ईरानी गोवा में उनकी बेटी पर अवैध ‘बार’ चलाए जाने के कांग्रेस के आरोप को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्तेजित हैं। शायद यही वजह है कि वे ‘आपा’ खो बैठी और सोनिया गांधी के साथ अमर्यादित व्यवहार किया। इधर, छत्तीसगढ़ विधानसभा में भी बीते मानसून सत्र में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने विश्व आदिवासी दिवस पर दिए जाने वाले अवकाश को लेकर टिप्पणी कर दी। इस पर कांग्रेस विधायकों ने हंगामा किया। चंद्राकर को आदिवासी संस्कृति व समाज का विरोधी बताया गया। मामले की गंभीरता को देख चंद्राकर ने सदन में ही माफी मांग ली। बहरहाल, नेताओं के अमर्यादित और बड़बोले बयानों से राजनीतिक कटुता तो बढ़ ही रही है, देश व समाज का माहौल भी दूषित हो रहा है। ऐसे में राजनीतिक दलों के कर्णधारों को विचार मंथन कर इस पर रोक लगाने के लिए ठोस व कारगर कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही एक ऐसी लक्ष्मण रेखा तय करनी होगी, जिसे कोई पार करने की जुर्रत न कर सके।