अरुण पटेल
ट्विटर और फेसबुक पोस्ट के माध्यम से अपने मन की पीड़ा और अपनी मनोभावनाओं को नेतृत्व तक पहुंचाने की कला में आजकल राजनेता पूरी तरह से पारंगत हो गए हैं। इन दिनों भाजपा नेता इसी के सहारे अपने मनोभावों को प्रकट कर रहे हैं। वे अपनी बात इस ढंग से सामने रखते हैं जिससे कभी-कभी लगता है कि निशाना तो विपक्ष पर साधा गया है लेकिन इस अंदाज में असली बात अपनी पार्टी के नेताओं तक पहुंचा रहे हैं। अब 25 विधानसभा क्षेत्रों में प्रदेश में उपचुनाव होना हैं। आज मंगलवार को भाजपा की त्रिमूर्ति आगर मालवा में नजर आई। जो त्रिमूर्ति आज इस विधानसभा क्षेत्र में नजर आई है उसमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा शामिल हैं। जयभान सिंह पवैया ग्वालियर की राजनीति में कट्टर महल विरोधी तथा हिंदूवादी नेता माने जाते हैं। जबसे सिंधिया के समर्थक अपने नेता के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं तबसे उन पर कोई ना कोई तंज अपरोक्ष रूप से पवैया करते रहे हैं। आज उन्होंने एक ट्वीट सोनिया गांधी को बिना उनका नाम लिए संबोधित कर किया है तो उसमें भी उन्होंने अपने मन की पीड़ा का इजहार कर ही दिया। उन्होंने लिखा है कि हे कांग्रेस की राजमाता! अपने कुनबे को संभालिए ना! आखिर आपकी रूठी हुई राजनीतिक संतानों को हम अपने हिस्से का कितना प्यार लुटाते रहेंगे? यदि नहीं संभलता तो किसी दिवालिया फर्म की तरह कांग्रेस प्रायवेट लि. का शटर डाउन क्यों नहीं कर देती? आप और देश दोनों सकून में रहेंगे। भाजपा में बड़े पैमाने पर कांग्रेस से दल बदल कर आ रहे विधायकों और नेताओं की ओर उनका इशारा था और इशारे ही इशारे में उन्होंने अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की। इससे पूर्व भी पवैया शिवराज सरकार में मंत्री बन कर पहली बार ग्वालियर पहुंचे सिंधिया समर्थकों को निशाने पर लेते हुए ट्वीट कर कह चुके हैं कि प्रदेश के नए मंत्रीगण जब ग्वालियर आएं तो वीरांगना लक्ष्मीबाई की समाधि पर दो फूल चढ़ाने क्यों नहीं गए? याद रखें यह प्रजातंत्र और मंत्री-परिषद शहीदों के लहू से उपजे हैं इतना तो बनता ही है……..। इस ट्वीट पर पूर्व मंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष बालेंदु शुक्ला ने पलटवार करते हुए कहा है कि पवैया अप्रत्यक्ष नहीं प्रत्यक्ष रूप से माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य पर कटाक्ष करते रहते हैं और यह कटाक्ष भी उनके ही संदर्भ में है, मैं सिंधिया की पीठ थपथपाना चाहता हूं कि उनके बीजेपी में आने से भाजपा की कमर झुक गई है। उन्होंने कहा कि हमने सिंधिया को बीजेपी में नहीं भेजा है, बीजेपी ने उनको लिया और जो पवैया महल और सिंधिया परिवार को निशाने पर लेते रहे उनके समर्थकों से रानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंचकर मत्था टेकने की उम्मीद क्यों की जा रही है।
प्रदेश भाजपा कार्यसमिति के सदस्य हीरेंद्र बहादुर सिंह ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि जिस तरह से भाजपा में बाहर के लोग आधिपत्य जमाते जा रहे हैं, असली भाजपा कार्यकर्ताओं को क्या करना चाहिए। नियुक्तियां भी धड़ाधड़ हो ही रही हैं। भाजपा में कोई शीर्ष नेता मार्गदर्शन के लिए बचा है क्या? लोगों के लिए सौ-सौ बहाने हैं, अब तो दुख-दर्द पूछने वाला भी कोई नहीं है। हम भाजपा कार्यकर्ता कहां जाएं, जिन्होंने अपनी पूरी जवानी भाजपा में खपा दी, वाह-री भाजपा। क्या राजनीति में ऐसे ही समझौते किए जाते हैं। उन्होंने अपनी पोस्ट में कई भाजपा कार्यकर्ताओं के दर्द को जो उन्हें सही लगता है उजागर किया है। देश को कांग्रेस मुक्त करने के चलते भाजपा जो कांग्रेस युक्त होती जा रही है उसी संदर्भ में यह चिंता उजागर होती नजर आ रही है।
इन दिनों जिस प्रकार के इशारों-इशारों में कुछ भाजपा नेताओं की नाराजगी सामने आ रही है और वह भी कुछ इस अंदाज में की अपनी बात भी कह दे और अनुशासन के डंडे से भी बच जाएं। फिलहाल तो मुदित और कुपित के बीच भाजपा उलझी हुई नजर आ रही है। मुदित याने मुदित शेजवार नहीं अपितु जो मंत्री बन गए हैं और जिन्हें अच्छे विभाग मिल गए उनसे है कुपित याने वह भाजपा कार्यकर्ता और नेता जो इस पीड़ा को झेल रहे हैं। वैसे भाजपा में नेताओं की रूठने का कोई खास अर्थ नहीं रहता रहता है, ऐसा भाजपा संगठन का मानना है क्योंकि पार्टी में संगठन सर्वोपरि रहता है, लेकिन फिर भी यदि असंतोष के स्वर उठ रहे हैं तो विधानसभा उपचुनाव की बेला में कहीं-कहीं असहज स्थिति भी पैदा हो सकती है और यह पार्टी के लिए चिंता का विषय भी कहा जा सकता है। जो मंत्री बन गए वह तो गदगद हैं लेकिन कुछ भाजपा नेता तमतमा रहे हैं। उल्टा पाठ पढ़ाने वाले कल अजय विश्नोई के ट्वीट के बाद आज जयभान सिंह पवैया के ट्वीट ने राजनीतिक गलियारों में सनसनी पैदा कर दी है। ऐसी स्थिति में पार्टी को यह आशंका होना भी स्वाभाविक है कि कहीं यह विरोध संगठित रूप ना ले ले। सूत्रों के अनुसार अब सिंधिया के साथ भाजपा में आए पूर्व कांग्रेस विधायकों से 2018 के विधानसभा चुनाव में जो भाजपा प्रत्याशी चुनाव हारे उन्हें समझाने बुझाने की कोशिशें तेज हो गई है और यह भरोसा दिलाया जा रहा है कि आपका भविष्य भी सुरक्षित है। इन्हें सार्वजनिक उपक्रमों, निगमों और मंडलों तथा आयोग में मंत्री का दर्जा देकर और संगठन में बेहतर पद देने का रास्ता खोजा जा रहा है। शीघ्र ही असंतोष को दबाने के लिए नियुक्तियों का सिलसिला जारी होने वाला है।
और अंत में……….!
आज भोपाल में सबसे पहले भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के निवास पर जाकर उनसे आशीर्वाद लिया। उन्होंने वहां पर मीडिया से चर्चा करते हुए दावा किया कि प्रदेश की जनता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया है। उन्होंने कांग्रेस की 15 माह की कमलनाथ सरकार को भ्रष्टाचारी सरकार निरूपित किया। उन्होंने यह भी कहा कि 90 दिन तक मैं शांत था क्योंकि कोरोना का प्रकोप था लेकिन अब मैदान में उतरा हूं तो कांग्रेस को जवाब भी दूंगा। उमा भारती ने सिंधिया को आशीर्वाद देते हुए कहा कि उनके सिंधिया परिवार से पारिवारिक संबंध है और ज्योतिरादित्य पूरे देश मे जगमगाते नजर आएंगे। सिंधिया पर उसी अंदाज में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के छोटे भाई और कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह ने पलटवार करते हुए चुनौती दी कि कांग्रेस के 15 माह के कार्यकाल की सीबीआई से जांच करा लें साथ ही सिंधिया के साथ आए 12 मंत्री बने हैं उनकी भी जांच करा लें। लक्ष्मण सिंह ने दावा किया कि उनके पास प्रमाण है कि यह सब बेईमान हैं और मैं शिवराज सिंह चौहान एवं विष्णु दत्त शर्मा को प्रमाण भी दे सकता हूं। फिलहाल सिंधिया और कांग्रेस नेताओं के बीच आर-पार की जंग एक प्रकार से छिड़ी हुई है और कोई भी नहले पर दहला साबित होने का अवसर नहीं गवां रहा है। यह तो उपचुनाव के नतीजे के बाद ही पता चलेगा कि कौन किस पार दहला साबित होता है।