0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’
आधुनिक समय में किया जाने वाला अत्यधिक प्रचार केवल गलत सूचनाऐं देने अथवा एक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए ही नहीं अपितु सत्य को मिटाने और आपकी समीक्षात्मक सोच को समाप्त करने के लिए किया जाता है। गैरी कास्परोव के इस उद्धरण ने हाल ही में मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि किस प्रकार से विशेष रूप से सीबीएसई के छात्रों के लिए सरकार द्वारा उठाया गया एक सद्भावनापूर्ण कदम दुर्भावनापूर्ण प्रचार का हिस्सा बन गया। इस तरह के कृत्यों को देखते हुए, हम हर बार शिक्षा को राजनीति से दूर रखने का प्रयास करते हैं, किन्तु यह दुखद है कि शिक्षा हर बार इस तरह की तुच्छ राजनीति का शिकार होती है, जहां लोगों का एक निश्चित वर्ग, जिनको ऐसे निर्मम प्रचारकों के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है, जो हमेशा सरकार की दूर-दृष्टि और कार्यों की भर्त्सना करने के साथ-साथ हमारे युवा शिक्षार्थियों के मन में अतिशय भय, भ्रम और कष्ट का कारण बनते हैं। वर्तमान में, लोगों का यह वर्ग छात्रों को 21वीं सदी के लिए सभी कौशलों के परिपूर्ण, नैतिकता एवं सत्यनिष्ठा जैसी पूर्ण क्षमता के साथ सकारात्मक सोच, वैज्ञानिक स्वभाव, विश्लेषणात्मक शक्ति और रचनात्मकता रूप से सशक्त बनाने की बजाय अपने लिए प्रभुत्व और सत्ता पाने की भ्रांतिपूर्ण लालसा के लिए शिक्षा को एक उपकरण के रूप में देख रहा है।
इस अभूतपूर्व महामारी ने मंत्रालय के समक्ष यह चुनौती पेश की है कि सरकार छात्रों के लिए न केवल गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करे, बल्कि छात्रों के लिए एक तनाव-मुक्त वातावरण बनाने पर भी ध्यान केंद्रित करे। इस दिशा में, मंत्रालय हमारे छात्र समुदाय से संबंधित सभी मुद्दों के प्रति जागरूकता अपनाते हुए संबंधित उपायों के लिए अथक परिश्रम कर रहा है। अवकाश के दौरान भी, बच्चों को मध्याह्न भोजन का प्रावधान, आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर छात्रों की अगली कक्षा में प्रोन्नति, कक्षा 12 के छात्रों को ‘चयन के अधिकार’ देना और भारत में ई-लर्निंग को बढ़ावा देने जैसे अनुकरणीय निर्णयों को लेने और उनका समर्थन करने के लिए मैं मानव संसाधन विकास विभाग की टीम पर गर्व का अनुभव करता हूं।
हालांकि, हाल ही में, सीबीएसई बोर्ड के पाठ्यक्रम के संशोधन को लेकर सामाजिक-राजनीतिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं से प्रभावित आरोपों की झड़ी लगाई जा रही है। इन सभी झूठे आरोपों के बावजूद, हम मंत्रालय में, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के शानदार नेतृत्व में आगामी पीढ़ी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के प्रावधान के लिए प्रतिबद्ध हैं। कुछ निहित स्वार्थ से ग्रस्त लोग सार्वजनिक डोमेन पर उपलब्ध निर्देशों को“पढ़ने और समझने” की बजाय पाठ्यक्रम की तर्कसंगत व्याख्या के लिए इसकी आलोचना कर रहे हैं।
यह क्या है और इसे क्यों किया गया है: छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों से प्राप्त अनेक अनुरोधों को देखते हुए, सीबीएसई से पाठ्यक्रम को संशोधित करने और कक्षा 9 से 12 के छात्रों पर पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने की सलाह दी गई थी। हालांकि ‘पाठ्यक्रम को 30 प्रतिशत तक कम किया गया है परन्तु यह सुनिश्चित करना विद्यालय प्रमुखों और शिक्षकों का दायित्व होगा कि कम किये गए विषयों को भी विभिन्न विषयों से जोड़ने के लिए आवश्यक जानकारी हेतु छात्रों को समझाया जाए। महामारी के कारण शिक्षा के समय की हानि के कारण, यह कदम 2021 में होने वाली वार्षिक परीक्षाओं में छात्रों के लिए बोझ को कम करने के एकमात्र उद्देश्य के तहत उठाया गया है। छात्रों का इन विषयों पर आंतरिक मूल्यांकन और वर्ष के अंत में होने वाली बोर्ड परीक्षा के लिए मूल्यांकन नहीं किया जाएगा, हालांकि, सी.बी.एस.ई. ने स्कूलों को एनसीईआरटी के वैकल्पिक शैक्षणिक कैलेंडर का पालन करने के भी निर्देश दिये है। यह कैलेंडर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, और इसमें ध्यानाकर्षण के लिए प्रस्तुत किए जा रहे सभी विषयों को इस कैलेंडर में शामिल किया गया है। इस कैलेंडर में प्रत्येक विषय के लिए विशिष्ट शिक्षण योजना है जिसे आमतौर पर घरों में उपलब्ध संसाधनों की मदद से अनुभवात्मक या गतिविधि-आधारित शिक्षण के आधार पर जाना जा सकता है। जैसा कि मैं कहता हूं, ‘शिक्षा से पहले सुरक्षा’ इसलिए वास्तव में, ये उपाय छात्रों को होने वाली परेशानियों और तनाव को कम करने में मदद करेंगे और कोविड-19 महामारी के कारण परीक्षाओं के लिए किया गया यह बस एक बार का उपाय है।
इसे कैसे किया गया: युक्तिसंगतता की प्रक्रिया उतनी सीधी नहीं है जितनी इन तथाकथित प्रचार के भूखे लोगों द्वारा मानी जा रही है। हमारे #सिलेबस-फॉर-स्टूडेंट्स-2020 अभियान के जरिए मिले सुझावों पर विचार करते हुए, जिसमें 1500 से ज्यादा विशेषज्ञों से सुझाव मिले, और कई सारे विशेषज्ञों की सलाह और सिफारिशों के बाद एक बहुत कठोर कवायद को अंजाम दिया गया। आदरणीय शिक्षाविदों के सुझावों और विशेषज्ञता ने हमें सीखने के परिणामों को अक्षुण्ण रखते हुए “न्यायपूर्ण युक्तिसंगतता” लाने में मदद की है। राष्ट्रवाद, स्थानीय सरकार, संघवाद जैसे 3-4 विषयों को बाहर रखे जाने के विपक्ष के गलत बयानों के उलट, युक्तिकरण सारे विषयों में किया गया है। मिसाल के तौर पर, अर्थशास्त्र में ये अपेक्षित विषय हैं फैलाव के उपाय, भुगतान घाटे का संतुलन, आदि। जबकि भौतिकी में ये हीट इंजन और रेफ्रिजरेटर, हीट ट्रांसफर, कनवेक्शन और रेडिएशन आदि हैं। इसी प्रकार गणित में निर्धारकों के गुण, संगतता, असंगतता, और द्विपदीय संभाव्यता वितरण और उदाहरणों द्वारा रैखिक समीकरणों की प्रणाली के समाधानों की संख्या। जीव विज्ञान में खनिज पोषण, पाचन और अवशोषण के कुछ हिस्से आदि हैं जिनको मूल्यांकन से छूट दी गई है।
ये तर्क कोई नहीं दे सकता है कि इन विषयों को किसी द्वेष भावना में या किसी सोची समझी योजना के तहत बाहर रखा गया है, जो केवल कुछ पक्षपाती दिमाग ही समझ सकते हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और हमारे युवा शिक्षार्थियों के लिए सीखने की गुणवत्तामूलक प्रक्रिया को सशक्त बनाने और सहायता करने के लिए साहसिक निर्णय ले रहा है। शिक्षा को सिर्फ ज्ञान के प्रसारण मात्र के रूप में नहीं देखा जा सकता है, इसे छात्रों को सशक्त करने के एक ऐसे तंत्र के रूप में भी समझा जाना चाहिए जिससे वे आलोचनात्मक ढंग से सोच सकें, समस्याएं सुलझा सकें, जिंदगी रोजाना उनके सामने जो चुनौतियां रखती जाएगी उनके बीच वे रचनात्मक होना, अभिनव होना, उनमें खुद को अनुकूलित करना और नवीन स्थितियों में सीखना ये सब कर सकें। हम “सबका ज्ञान – सबके लिए ज्ञान”के विचार में विश्वास करते हैं और पाठ्यक्रम के माध्यम से अपने प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए महज ज्ञान की संरचनाएं बना देने का विरोध करते हैं।
हमें ऐसी ज्ञान व्यवस्था को महत्व देना चाहिए जो छात्रों को ऐसे सच्चे ज्ञान से सक्षम करे जो अनुभवात्मक, समग्र, एकीकृत, सीखने वाले पर केंद्रित और रचनात्मक है। चर्चा छात्रों के विकास और सशक्तिकरण पर होनी चाहिए, न कि उन्हें मोहरे की तरह इस्तेमाल करने के लिए और उस व्यवस्था का मखौल उड़ाने के लिए जो युवाओं की ज़िंदगी को सशक्त करती है। इसलिए मैं विनम्रतापूर्वक सभी से निवेदन करता हूं कि रचनात्मक विचार-विमर्श और कार्यों के जरिए भारत को ज्ञान का केंद्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ें। आइए, छात्रों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए हम सब मिल-जुलकर प्रयास करते हैं।
(लेखक भारत सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं)