टोक्यो / सात साल की उम्र में अखाड़े में कदम रखने वाले बजरंग पूनिया ने टोक्यो ओलिंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता है। उन्होंने तीसरे स्थान के लिए हुए मुकाबले में कजाकिस्तान के दौलत नियाजबेकोव को 8-0 से हराया।
बजरंग का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले के खुदन गांव में हुआ था। उनके पिता बलवान सिंह भी पहलवान हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर तक नहीं पहुंच पाए। बेटे को ओलिंपिक भेजने का सपना देखने वाले बलवान सिंह ने बजरंग को 7 साल की उम्र में ही अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेंच सीखने के लिए भेजना शुरू कर दिया। बजरंग की जीत के बाद उनके पिता ने कहा कि मैं खुशी बयान नहीं कर सकता। मेरे बेटे ने मेरा सपना पूरा कर दिया।
ओलिंपिक खेलने से पहले रोम में गोल्ड जीता
बजरंग सोनीपत में मौजूद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के रीजनल सेंटर से ट्रेनिंग की है। उनका परिवार भी सोनीपत में रहता है। इसी साल मार्च में रोम में हुई माटेओ पेलिकोन रैंकिंग सीरीज में गोल्ड जीतकर बजरंग पूनिया ने यह जता दिया कि वे ओलिंपिक के लिए तैयार हैं।
बजरंग वर्ल्ड अंडर-23 चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स, एशियन चैंपियनशिप और वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीत चुके हैं। उन्हें पद्मश्री, अर्जुन पुरस्कार और खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है।
2013 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में जीता पहला मेडल
बजरंग ने सीनियर लेवल पर अपना पहला वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल 2013 में 60 किलोग्राम वेट कैटेगरी में जीता था। उन्होंने हंगरी में हुए इस टूर्नामेंट में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। 2018 में उन्होंने बुडापेस्ट में हुई वर्ल्ड कुश्ती चैंपियनिशप में सिल्वर जीता। 2019 में भी नूर सुल्तान में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में बजरंग ने सिल्वर मेडल जीता।
एशियन चैंपियनशिप में अब तक सात मेडल
बजरंग एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में अब तक 7 मेडल जीत चुके हैं। उन्होंने इस साल अल्माटी में हुई एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था। इससे पहले 2020 में दिल्ली में और 2014 में अस्ताना में हुई चैंपियनशिप में भी उन्होंने सिल्वर मेडल जीता था। 2019 में शिआन और 2017 दिल्ली में गोल्ड मेडल हासिल किया। 2018 बिश्केक और 2013 दिल्ली में उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से संतुष्ट होना पड़ा था।
कॉमनवेल्थ में जीते दो मेडल
बजरंग कॉमनवेल्थ गेम्स में दो मेडल जीत चुके हैं। 2018 में गोल्ड कोस्ट में उन्होंने 65 किलो वेट में गोल्ड जीता। 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल अपने नाम किया।