जैसा कि आप सभी को ज्ञात है कि सावन मास मुख्यत: भगवान शिव शंकर और उनके परिवार की पूजा के लिए समर्पित है। सावन मास में लोग मंदिरों या अपने घरों में शिवलिंग की पूजा करते हैं। उस पर भांग, धतूरा, मदार, बेलपत्र आदि मुख्य रूप से चढ़ाते हैं। आप यदि शिवलिंग स्थापित करने की सोच रहे हैं, तो आपको इसकी विधि के बारे में जानना होगा। शिवलिंग कहां और कैसे स्थापित करना चाहिए? यह जानना काफी महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं इसके बारे में।
शिव पुराण के अनुसार, अनुकूल एवं शुभ समय में किसी पवित्र तीर्थ में नदी आदि के तट पर अपनी रूचि के अनुसार ऐसी जगह शिवलिंग की स्थापना करनी चाहिए, जहां पर रोज पूजन हो सके। पार्थिक द्रव्य से, जलमय द्रव्य से अथवा तैजस पदार्थ से अपनी रूचि अनुसार फल्योक्त लक्षणों से युक्त शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा करने से उपासक को उस पूजन का पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है। उत्तम लक्षणों से युक्त शिवलिंग की पीठ सहित स्थापना करनी चाहिए।
शिवलिंग का पीठ मंडलाकार या गोल, चौकोर, त्रिकोण होना चाहिए। पहले मिट्टी से, पत्थर से या लोहे आदि से शिवलिंग का निर्माण करना चाहिए। जिस पदार्थ से शिवलिंग का निर्माण हो, उसका पीठ भी बनाना चाहिए।
लिंग की लंबाई निर्माणकर्ता या स्थापना करने वाले व्यक्ति के १२ अंगुल के बराबर होनी चाहिए। ऐसे ही शिवलिंग को उत्तम माना गया है। इससे कम लंबाई हो तो फल में कमी आ जाती है, अधिक हो तो कोई दोष की बात नहीं है।
शिवलिंग का चयन करने के बाद किसी पुरोहित की मदद से उसकी विधिपूर्वक स्थापना कराएं और नित्य उसका पूजन करें। शिवलिंग के पूजन में वही सामग्री अर्पित करें, जो पहले शिव पूजन की विधि में बताई गई है। शिव पुराण में कहा गया है कि यदि नियमपूर्वक शिवलिंग का दर्शनमात्र कर लिया जाए तो वह भी कल्याणप्रद होता है।