मोदी कोविड प्रबंधन में फेल!


0 संजीव कुमार वर्मा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में पेड मीडिया और अंध भक्तों के माध्यम से अपनी ऐसी छवि बनाई है जिसके आभामंडल के सामने वैज्ञानिक और मेडिकल एक्सपर्ट भी सुझाव देने में कतराते हैं। वे देश के एकमात्र ऐसे राजनेता हैं, जिनका हर क्षेत्र (जल, थल, नभ) में दखल है चाहे वह राडार का विषय हो या आम चूसने का।
शायद यही एकमात्र वजह है कि वे एक्सपर्ट के सुझावों को भी नजरअंदाज कर देते हैं। आत्ममुग्धता में लीन ऐसे राजनेता को भगवान सद्बुद्धि दे। मोदी द्वारा देश के पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में सक्रियता और कोरोना संक्रमण की भयावहता की अनदेखी के कारण लाखों लोगों को समयपूर्व काल के गास में समा जाना पड़ा। वैज्ञानिकों और मेडिकल से जुड़े विशेषज्ञों की सलाह के बावजूद उन्होंने विश्व के अन्य दूसरे देशों में आई कोरोना की दूसरी लहर से कोई सीख नहीं लिया और राज्यों के चुनावी समीकरण को साधने में पूरा समय और ध्यान लगाया। कोरोना संक्रमण से उपजे देश के हालात ने देश की गोदी मीडिया और भक्तों द्वारा गढ़े गये उनके इमेज को तार-तार करके रख दिया है। पिछले 70 सालों से देश ने आज तक ऐसी मेडिकल इमरजेंसी जैसे हालात कभी नही देखा। फरवरी में निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव तिथि की घोषणा से पहले मोदी सरकार चुनावों में जाने के लिये कमर कस चुकी थी। देश पहले के जुमले देने वाले ने देश को ऐसी आपदा में ढकेल दिया जहाँ चारों ओर लोग लाचारी, बेबसी और ऑक्सीजन की कमी से अपनों को दम तोड़ते देखते रहे। पीड़ित रोते बिलखते रहे और अंधभक्त मोदी गुणगान में मशगूल रहे। मोदी अपनी चुनावी रैलियों में आये लाखों लोगों की उपस्थिति से गद-गद चुनाव में जीत का दंभ भरते रहे और देश के लोग जिंदगी की जंग हारते गये। पूरे देश में जब 45 से 60 के उम्र वालों का टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू हुई उस समय मोदी को देश को बता देना था कि 18 से उपर के लोगों के टीकाकरण की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को लेनी होगी। परन्तु उन्होंने पश्चिम बंगाल और असम के आसन्न चुनावों के मद्देनजर ऐसा नहीं किया क्योंकि उन्हें इस बात की आशंका थी कि हमारा देश 18 से 45 आयु वर्ग के युवाओं वाला देश है। कहीं विपक्ष इसे मुद्दा ना बना लें, क्योंकि ऐसा वादा वे बिहार में कर चुके थे। परिणाम स्वरूप राज्यों के पास टीकाकरण के लिये ना कोई तैयारी थी और ना ही संसाधन था।
टीकाकरण की कहानी :
दो फार्मा कंपनियां भारत बायोटेक का (कोवैक्सिन) और सीरम इंस्टिट्यूट (अदार पुनेवाला ) का कोविशिल्ड दोनों कंपनियों को मात्र 45 से 60 आयु वर्ग की जनसँख्या के बराबर टीका बनाने का आर्डर केंद्र सरकार ने दिया था। बकौल पुनेवाला हमें सिर्फ 19 करोड टीके का आर्डर केंद्र सरकार ने दिया था। उस स्थिति में कोई भी कम्पनी अपनी प्रोडक्शन क्षमता किस आधार पर बढ़ाती? दूसरी बात पुनेवाला के बयान कि कोविशिल्ड के अलावा दूसरे टीके पानी के समान है, ने आम जनता में भ्रम पैदा करने का कार्य किया। जिसका जवाब केंद्र सरकार को उनसे मांगा जाना चाहिए था। लेकिन उनसे कोई जवाब नहीं मांगा गया। जैसे ही चुनाव संपन्न हुआ मोदी सरकार ने 1 मई से 18+ के लिये टीकाकरण की घोषणा कर दी और उसे राज्यों पर छोड़ दिया जबकि उन्हें यह भली भांति पता है कि देश की कंपनियों के पास ना तो टीका उत्पादन की क्षमता है और ना ही उसके पास इतना पर्याप्त संसाधन उपलब्ध है। मोदी ने अपनी असफलता छुपाने, जनता का गुस्सा और अपनों को खोने से उपजे असंतोष को दबाने सारी नाकामी राज्यों के सर मढ़ने की कोशिश की।
आज कोरोना संक्रमण से बचने का एकमात्र उपाय टीकाकरण है जिस पर विश्व के तमाम विकसित और विकासशील देश जोर दे रहे हैं। इस स्थिति में केंद्र सरकार को आगे बढ़कर टीका की उपलब्धता और दूसरे देशों से टीका और मेडिकल से जुड़े कच्चा माल और उपकरण के आयात से संबंधित विषयों पर दूसरे देशों के विदेशी राजनायिकों से वार्ता कर कार्य सुगम करने की जिम्मेदारी निभानी थी, परन्तु मोदी सरकार ने इसे भी राज्यों के जिम्मे छोड़ दिया। वजह मात्र इतनी कि इसका भार केंद्र सरकार पर ना पड़े।
अब राज्य सरकारें ग्लोबल टेंडर के जरिये टीका के लिये टेंडर आमंत्रित करेगी। कोई भी राज्य सरकार कम या ज्यादा कीमत पर टीका खरीदेगी। फिर उस पर राजनितिक विवाद खड़े होंगे। बेहतर होता केंद्र सरकार टीके को खुद खरीदती और राज्यों को आबंटित करती, परन्तु उसने मात्र राज्यों को फंड देने से बचने, अपनी असफलता छुपाने और नया विवाद पैदा कर राज्य सरकार पर दोष मढ़ने के लिये सारा कुचक्र खेला।

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