भगवान श्रीविष्णु के प्रमुख अवतारों और उनके सभी नामों के बारे में जानिये

शुभा दुबे

वैदिक ग्रंथों और पुराणों में भगवान विष्णु, शिव और ब्रह्मा को एक माना गया है। ये त्रिदेव सृष्टी के जनक हैं, पालनहार हैं, और संहारकर्ता हैं। विभिन्न पुराणों में दिये गये कथानकों के माध्यम से त्रिमूर्ति की शक्ति के बारे में पता चलता है।

हिन्दू धर्म के ग्रंथों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व या जगत का पालनहार कहा गया है। त्रिमूर्ति के अन्य दो रूप ब्रह्मा और शिव को माना जाता है। ब्रह्मा जी को जहाँ विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है, वहीं शिव जी को संहारक माना गया है। न्याय को प्रश्रय, अन्याय के विनाश तथा जीव (मानव) को परिस्थिति के अनुसार उचित मार्ग-ग्रहण के निर्देश हेतु विभिन्न रूपों में अवतार ग्रहण करने वाले के रूप में भगवान विष्णु मान्य रहे हैं। भगवान विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक हैं। विष्णु को विश्व का पालनहार माना जाता है। वे अपने चार हाथों में क्रमश’ शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं। भगवान विष्णु अत्यंत दयालु हैं। उनकी शरण में जाने पर कल्याण हो जाता है। जो भक्त भगवान विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वंदन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। भगवान विष्णु के दस अवतार माने जाते हैं। यह हैं− मत्स्य अवतार, वराह अवतार, कूर्म अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार और कल्कि अवतार। इनमें कल्कि अवतार के बारे में कहा जाता है कि यह अवतार अभी होना है।

भगवान विष्णु के ३९ नाम माने जाते हैं जो इस प्रकार हैं− विष्णु, नारायण, कृष्ण, बैकुण्ठ, विष्टरश्रवस, दामोदर, हृषीकेश, केशव, माधव, स्वभू, दैत्यारि, पुण्डरीकाक्ष, गोविन्द, गरुड़ध्वज, पीताम्बर, अच्युत, शांगी, विष्वक्सेन, जनार्दन, उपेन्द्र, इन्द्रावरज, चक्रपाणि, चतुर्भुज, पद्मनाभ, मधुरिपु, वासुदेव, त्रिविक्रम, देवकीनन्दन, शौरि, श्रीपति, पुरुषोत्तम, वनमाली, बलिध्वंसी, कंसाराति, अधोक्षज, विश्वम्भर, कैटभजित, विधु और श्रवस्तलाञ्छन। भगवान विष्णु के शंख का नाम ‘पाञ्चजन्य’ तथा चक्र का नाम ‘सुदर्शन’, गदा का नाम ‘कौमोदकी’ खड्ग का नाम ‘नन्दक’ और मणि का नाम ‘कौस्तुभ’ है।

विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वर्णन मिलता है कि लवणसमुद्र के मध्य में विष्णुलोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित हैं। उसमें भगवान श्रीविष्णु वर्षा ऋतु के चार मासों में लक्ष्मी द्वारा सेवित होकर शेष शय्या पर शयन करते हैं। बैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत अयोध्या पुरी में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहां उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्य भाग में अग्नि, सूर्य और चंद्रमा रहते हैं। कूर्म, नागराज तथा संपूर्ण वेद वहां पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्टदल कमल है, जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरुष भगवान श्रीविष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं। भक्त वत्सल भगवान श्रीविष्णु की प्रसन्नता के लिए जप का प्रमुख मंत्र− ओम नमो नारायणाय तथा ओम नमो भगवते वासुदेवाय हैं।

पुराणों में विष्णु, शिव और ब्रह्मा को एक माना गया है। ये त्रिदेव सृष्टी के जनक हैं, पालनहार हैं, और संहारकर्ता हैं। विभिन्न पुराणों में दिये गये कथानकों के माध्यम से त्रिमूर्ति की शक्ति के बारे में पता चलता है। मत्स्यावतार में प्रलय काल के उपरान्त जीव की उत्पत्ति और बचाव का कथानक, कूर्मावतार में डोलती पृथ्वी को विशाल कछुए की पीठ पर धारण करने का कथानक, नृसिंहावतार में भक्त प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकशिपु के वध का कथानक, वामनावतार में दैत्यराज बलि के गर्व हरण तथा तीनों लोकों को भगवान द्वारा तीन पगों में नापने का कथानक है, परशुरामावतार में क्षत्रियों के गर्व हरण का कथानक, रामावतार में राक्षस राज रावण के अहंकार को नष्ट कर उसके वध का कथानक, कृष्णावतार में कंस वध और महाभारत युद्ध में कौरवों के विनाश का कथानक और बुद्धावतार में जीव हत्या में लिप्त संसार के दुखीजन को अहिंसा का महान संदेश देने का कथानक समाज को सही राह तो दिखाते ही हैं साथ ही ईश्वर की परम शक्ति का अहसास भी कराते हैं।

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