हायब्रिड-सरकार: कांग्रेस के ‘प्लाज्मा’ से सत्ता के कोरोना का इलाज

 उमेश त्रिवेदी

‘ए पार्टी विद डिफरेंस’ के तमगे से खुद को विभूषित करने वाली भाजपा ने ग्वालियर के ‘महाराज’ ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मिलकर मध्य प्रदेश में ‘हायब्रिड-सरकार’ बनाकर जो नया राजनीतिक-उत्पाद सत्ता के बाजार में उतारा है, वह खोटे सिक्कों की तरह लोकतंत्र की करंसी को राजनीति से बेदखल कर सकता है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की कैबिनेट में कुल 33 मंत्रियों में 14 मंत्री कांग्रेस से आयातित नेता हैं, जो केन्द्र सरकार और सिंधिया के बीच सम्पन्न पैकेज डील में शिवराजसिंह चौहान को मिले हैं। अंक-गणित के सीधे हिसाब से सत्ता के बंटवारे में 58 फीसदी सत्ता ही भाजपा के हिस्से मे आई है, जबकि राजनीति का 42 सैंकड़ा हिसाब-किताब ज्योतिरादित्य सिंधिया के बहीखातों में दर्ज हो रहा है।
वैसे भी मुख्यमंत्री का सेहरा भले ही शिवराजसिंह चौहान के माथे पर सजा हो, उसकी चमक-दमक में राजनीतिक फीकापन साफ नजर आ रहा है। शिवराज सिंह पर फीकेपन के आक्षेप जितना उनके राजनीतिक वजूद को चुनौती देते प्रतीत होते हैं, उससे भी ज्यादा वो भाजपा की सामूहिकता और संगठनात्मक क्षमता को चुनौती देते नजर आ रहे हैं। लगता है कि अंत्योदय की स्वस्थ राजनीतिक परम्पराओं में सांस लेने वाली भाजपा को सत्ता के कोरोना ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है। यह घटनाक्रम भाजपा में बढ़ते सत्ता के कोरोना के इंफेक्शन को उजागर कर रहा है। कोरोना से निपटने के हालिया उपायों में स्वस्थ होने वाले कोरोना पीड़ितों के प्लाज्मा से कोरोना के गंभीर मरीजों को ठीक करने की थैरेपी को अपनाया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने स्वस्थ हुए कोरोना मरीजों से प्लाज्मा इकट्ठा करने के लिए देश में पहली प्लाज्मा बैंक भी स्थापित की है। भाजपा हमेशा कांग्रेस पर सत्ता लोलुपता का आरोप लगाती रही है। दिलचस्प यह है कि सत्ता के कोरोना के चपेट में आ चुकी भाजपा अब कांग्रेस के ‘प्लाज्मा’ का उपयोग करके अपनी बीमारी का इलाज करना चाहती है। कांग्रेस के प्लाज्मा से सत्ता के कोरोना के इलाज की यह तदबीर लोकतंत्र को गहरे सवालों की ओर ढकेल रही है। कहना मुश्किल है कि राजनीति में सत्ता के कोरोना का यह संक्रमण लोकतंत्र के मूल्यों को कितनी क्षति पहुंचाएगा?
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की संजीदगी के सभी कायल हैं। चुनावी मंचों पर उनके भाषण और शब्द मृगों की तरह भले ही जंगल-जंगल कुलांचे भरते हो, लेकिन संवेदनशील मौकों पर उनके शब्द सुनारों के तराजु की तरह नपे-तुले होते हैं। मंत्रिमंडल का गठन सब कुछ भाजपा की आदर्श परम्पराओं के अनुरूप नहीं होने वाला है, इसका आभास बुधवार को खुद शिवराज सिंह के बयान में मिल गया था। शिवराज ने कहा था कि ‘अमृत-मंथन’ में जो विष निकलता है, उसे ‘शिव’ को ही पीना पड़ता है। शिवराज राजनीतिक गरल हलक से नीचे उतार चुके हैं। विषपायी होने के अपने सुख-दुख अथवा फल-प्रतिफल होते हैं। फल यह है कि शिवराज फिलवक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान है, जो सुखदायी है। प्रतिफल यह है कि कांग्रेसी-डीएनए के सम्मिलन से निर्मित भाजपा की इस हायब्रिड-सरकार में सत्ता की फसल के साथ असंतोष की जो खरपतवार पैदा होगी, उसको समेटने की जिम्मेदारी भी शिवराज सिंह की ही होगी। कांटों की इस खरपतवार को समेटना आसान नहीं हैं। यह दिलो-दिमाग को लहूलुहान करने वाली चुनौती है। इसे कैसे समेटा जाएगा?
खेती-किसानी की तरह वैचारिक राजनीति के धरातल पर सरकार बनाने का हायब्रिड प्रयोग देश के लोकतांत्रिक पर्यावरण के लिए कतई मुफीद नहीं है। अपने जन्मजात वैचारिक विरोधियों के सहारे सिंहासन का अपहरण सत्ता पाने का सरल उपाय हो सकता है, लेकिन देश और लोकतंत्र की सेहत के हिसाब से यह घातक होता है। जिस प्रकार हायब्रिड सीड (संकर बीज) ने परम्परागत खेती के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है, उसी प्रकार मध्य प्रदेश में बनने वाली ‘हायब्रिड-सरकार’ जनतांत्रिक मूल्यों के लिए घातक हो सकती है। ‘हायब्रिड’ से होने वाले इसी नुकसान की वजह से आर्गेनिक खेती के नाम पर परम्परागत खेती की वापसी पर लगातार जोर दिया जा रहा है। जिस प्रकार ‘हायब्रिड’, खेती के खतरे दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं, उसी तरह ‘हायब्रिड-सरकारें’, भी लोकतंत्र के लिए भस्मासुर साबित हो सकती हैं। जो लोग सत्ता के लालच में भाजपा में शरीक हुए हैं, उनकी रगों में वर्षों से कांग्रेस का डीएनए सक्रिय है। यह डीएनए बदलना संभव नहीं हैं। इस सवाल के उत्तर का बेकरारी से इंतजार रहेगा कि भाजपा उन्हें कैसे आत्मसात करेगी?

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