अशोक झुनझुनवाला / तमस्वती घोष, आईआईटी मद्रास इनक्यूबेशन सेल
मोबाइल एप्स (एप्लिकेशन) न केवल व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, जीमेल, पेटीएम या टिकटॉक जैसे एप-पब्लिशरों के लिए ढेर सारा राजस्व या धन सृजित करते हैं, बल्कि अपने अनोखेपन की बदौलत विशिष्ट कार्यक्षमता एवं खूबियों की दृष्टि से आपके फोन और टैबलेट को स्मार्ट भी बनाते हैं। आज भारत में उपयोग किए जाने वाले ज्यादातर मोबाइल एप्स को विदेशी कंपनियों ने ही बनाया है और उनका प्रबंधन या संचालन भी उन्हीं के हाथों में है। इनमें से अधिकतर कंपनियों का वास्ता पश्चिमी देशों से है। यही नहीं, हाल के वर्षों में चीन के मोबाइल एप्स ने भी भारत में खूब धूम मचाया है। भारत में आज 800 मिलियन से भी अधिक स्मार्टफोन उपयोगकर्ता यानी यूजर हैं जो भारी-भरकम राजस्व अर्जित करने में एप-पब्लिशरों के काम आ रहे हैं। भारत भी ‘टिक टॉक’ के तेजी से बढ़ते बाजारों में से एक है। दुनिया भर में हुए ‘टिक टॉक’ के 2 अरब डाउनलोड में भारत का 30 प्रतिशत का व्यापक योगदान है। भारतीय कंपनियां अब तक अपने एप्स के दम पर इस बाजार में बढ़त बनाने और विदेशी एप-पब्लिशरों को कड़ी टक्कर देने के लिए बड़ी संख्या में यूजर्स को अपनी ओर आकर्षित करने में विफल रही हैं।
लगभग दस साल पहले चीन में कमोबेश यही स्थिति देखी जा रही थी जब संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में विकसित एप्स ने पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था। फिर एक ऐसा वक्त आया जब चीन की सरकार ने देश में इनमें से कई एप्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। उदाहरण के लिए, व्हाट्सएप को आज चीन में ब्लॉक कर दिया गया है। इस प्रतिबंध से चीन की देसी या घरेलू कंपनियों को बड़ी तेजी से उभरने और अनगिनत गुणवत्तापूर्ण एप्स बनाने में मदद मिली, जो अपने देश में मोबाइल यूजर्स की विशाल संख्या से लाभ उठाकर कई अमेरिकी उत्पादों की भांति ही काफी कामयाब हो गए। ‘वीचैट’ जैसे चीनी एप को उस समय काफी फलने-फूलने का मौका मिला जब इसकी अंतिम विदेशी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों में से एक बड़ी कंपनी चीन के बाजार से बाहर हो गई। इसी तरह गूगल मैप्स सहित सभी गूगल एप्स पर चीन में प्रतिबंध लगा दिया गया है और इसने बाईडू (लोकप्रिय सर्च इंजन) को ठीक इसी तरह के बेहतरीन एप्स बनाने में समर्थ कर दिया। कामयाबी की ठीक यही गाथा फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम का स्थान लेने वाली अलीपे और क्यूक्यूब की भी है। अलीबाबा ग्रुप जैसे चीनी वेंचर फंड इनमें खूब पैसा लगा रहे हैं और इन एप कंपनियों का बाजार मूल्य अब उनके पश्चिमी समकक्षों के कमोबेश बराबर हो गया है। यही नहीं, हाल के वर्षों में इनमें से कई चीनी एप्स ने तो भारत में भी अपनी धमाकेदार एवं व्यापक मौजूदगी दर्ज करा दी है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या चीनी एप्स पर लगाया गया यह प्रतिबंध भारतीय स्टार्ट-अप्स के लिए बेहतरीन स्वदेशी एप बनाने का स्वर्णिम अवसर साबित हो सकता है, ताकि वे भारतीय बाजार का लाभ उठा सकें और किसी दिन विश्व स्तर पर छा सकें। जी हां, यह बिल्कुल सही बात है। बेशक यह एक अवसर है, लेकिन निश्चित रूप से इसकी डगर आसान नहीं है।
भारतीय युवाओं में निश्चित तौर पर इस तरह के एप्स विकसित करने की विशिष्ट तकनीकी क्षमताएं हैं। यही नहीं, कई भारतीय युवा फेसबुक और गूगल जैसी तकनीकी दिग्गज कंपनियों के लिए इस तरह के उत्पादों पर काम कर रहे हैं। इस तरह के कार्य के लिए जिस कौशल की आवश्यकता है उसका देश में निरंतर विस्तार हो रहा है। कल, आईआईटी मद्रास ने डेटा विज्ञान में एक ऑनलाइन बीएससी डिग्री का शुभारंभ किया जो सभी उच्च माध्यमिक स्नातकों के लिए खुला है। इससे बड़ी संख्या में बेहतरीन गुणवत्ता वाले एप्लिकेशन डेवलपरों के तैयार होने की उम्मीद है। दरअसल, इस तरह के कार्यक्रम इन क्षमताओं को और भी अधिक मजबूत करेंगे।
हालांकि, मोबाइल एप्स को सफल बनाने के लिए सिर्फ तकनीक ही नहीं, बल्कि इससे भी कहीं अधिक विशिष्ट काबिलियत की आवश्यकता होती है। जो एप्लिकेशन काफी लोकप्रिय हो जाते हैं, उनकी डिजाइनिंग कुछ इस तरह से की जाती है कि वे लक्षित यूजर्स को फौरन अपने लुक, आकृति और अहसास से लुभाने लगते हैं। इसके लिए अभिनव डिजाइन, यूजर इंटरफेस और बेहतरीन खूबियों को ध्यान में रखा जाता है। इसके साथ ही प्रत्येक क्षेत्र के यूजर्स की विशिष्ट आदतों को ध्यान में रखकर उन्हें आकर्षित करने के लिए निरंतर नई विशेषताओं को जोड़ते हुए एप्स की बार-बार डिजाइनिंग की जाती है और उन्हें नया स्वरूप दिया जाता है। इसके लिए अत्यधिक प्रतिभाशाली लोगों की एक ऐसी टीम की आवश्यकता होती है जिसके लिए वित्त पोषण या फंडिंग कोई समस्या नहीं हो। देश में विकसित एप्स बाजार में छा सकें, इसके लिए भी वित्त या धनराशि का पुख्ता इंतजाम होना चाहिए। ये सभी एक स्टार्ट-अप के लिए चुनौतियां हैं।
हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद आज भारत में स्टार्ट-अप समुदाय के पास कोई भी नया अहम कार्य पूरी मुस्तैदी के साथ शुरू करने के लिए पर्याप्त ऊर्जा और परिपक्वता है। वैसे तो देश में यह अवसर पहले से ही उपलब्ध रहा है, लेकिन इस प्रतिबंध से यह अब और भी स्पष्ट रूप से सामने आ गया है। अब यह स्टार्ट-अप्स पर निर्भर करता है कि वे डटकर खड़े हों और स्वयं को कामयाब साबित करें। इसके लिए कड़ी मेहनत, दूसरों की विफलताओं से निरंतर सीखने और सभी बाधाओं से पार पाने की आवश्यकता है। हालांकि, एक अच्छी बात यह है कि यही तो एक स्टार्ट-अप की परिभाषा है। सौभाग्यवश, भारत में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम या परिवेश आज काफी विशाल या व्यापक हो चुका है, जिसमें प्रत्येक के लिए सफल होने की काफी गुंजाइश है। हम तो अब उस दिन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब हमारे मोबाइल फोन पर भारतीय एप्स का इस्तेमाल पसंदीदा विकल्प के रूप में किया जाने लगेगा।