तीस जून को भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच हुई सीमा वार्ता के बाद सरकारी सूत्रों ने जो जानकारी दी है वह चौंका देने वाली है। प्रधानमंत्री मोदी के इस विषय पर बयान और सरकारी स्तर पर जारी यह जानकारी विरोधाभासी है। बताया गया है कि चीनी सैन्य अधिकारियों को बैठक में बता दिया गया है कि लद्दाख क्षेत्र में चीन की नई सीमा रेखा भारत को मंजूर नहीं है। सरकार के सूत्रों ने यह जानकारी भी दी कि चीनी सेना से मांग की गई है कि तनाव से पूर्व की स्थिति चीन को बहाल करनी होगी जिसमें गलवाँ घाटी, पन्गोंग त्सो से चीनी सेना को पीछे हटना होगा। सरकारी सूत्रों के द्वारा दी गई इन दो जानकारियों से एक संदेश साफ नज़र आता है कि चीन ने भारत की भूमि पर कब्जा कर लिया है जिसे भारतीय वार्ताकारों ने नई सीमा रेखा कहा है। कुछ भारतीय मीडिया में यह 8 किलोमीटर की पट्टी बताई गई है। कुछ अन्य मीडिया में इसे 40 से 60 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बताया गया है। यह जाहिर हो जाने के बाद पिछले दिनों सरकार के शीर्ष स्तर से दिए गए तमाम बयानों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है, भारतीय सीमा में चीन के घुस आने की खबरें पहले भी जाहिर हुई थीं लेकिन हर बार सरकार के स्तर पर इसका खंडन किया गया। जून के मध्य में सीमा पर हुई झड़प में जब एक कर्नल समेत 20 सैनिकों की मृत्यु हुई तब भी यह कहा गया था कि भारतीय सीमा में ना कोई घुसा है ना किसी भारतीय भूमि पर कब्जा किया गया है। यह समझ पाना कठिन है कि जो बात सेना सीमा वार्ता में स्वीकार कर रही है उसे सरकार स्वीकार क्यों नहीं कर रही है ? सेना के लिए यह गांधी- वादी अहिंसक नीति मान लेना संभव नहीं है कि एक गाल पर कोई थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल उसके सामने कर दिया जाना चाहिए। भारत में चीनी मोबाइल एप्लीकेशन पर प्रतिबंध लगाने और चीनी माल की खरीद का बहिष्कार करने जैसे कदमों को चीनी सैन्य हमले के संदर्भ में इसी तरीके से समझा जा सकता है।लेकिन यह स्पष्ट है कि चीन को इस बहिष्कार से कोई बडा फर्क नहीं पड़ेगा। इसके लिये उसके बड़े आयातों को सरकार को रोकना होगा। चीन के इतिहास से स्पष्ट है कि जब भी उसने भारत के किसी क्षेत्र पर अवैध कब्जा किया है तब उसने लंबे समय तक उस क्षेत्र को छोड़ा नहीं है अक्साई चीन का इलाका इसका जीता जागता उदाहरण है। चीनी कब्जे से इंकार कर भारत सरकार एक प्रकार से दुनिया में चीन को क्लीन चिट दे रही है जिसका वह और कब्जा करने में दुरुपयोग कर सकता है। सरकार का यह स्टैंड समझ में आना कठिन है। देश को अगर बताया जाना जरुरी नहीं मानती है तो सरकार को कम से कम चीन को उसके किए का माकूल उत्तर दिया जाना तो जरूरी है। अनेक दौर की सैन्य बातचीत के बाद भी चीन का नहीं झुकना और इसके बावजूद भारत सरकार का उसे एक तरह से क्लीनचिट दे देना एक बड़ी और गंभीर कूटनीतिक भूल साबित हो सकती है जिसके परिणाम देश को आने वाले कई वर्षों तक भुगतने पड़ सकते हैं। ताज्जुब की बात है कि राष्ट्र को संबोधित करते हुए मंगलवार को भी प्रधानमंत्री ने चीन के इस मसले पर देश को विश्वास में लेने की जरूरत नहीं समझी ।