“लाई”, ग्राहकी नहीं आई, बताशा कर रहा इंतजार: मुश्किल में लागत का निकाला जाना

संतोष अग्रवाल
भाटापारा। रौनक नहीं है फिर भी ग्राहकी की उम्मीद है। इसलिए लाई बताशा की दुकानों का लगना चालू हो चुका है, लेकिन लक्ष्मी पूजा पर जरूरी इस सामग्री को खरीदने के लिए कुछ ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। लाई की प्रति किलो खरीदी 50 से 60 रुपए पर की जा सकेगी तो बताशा 120 से 140 रुपए किलो पर मिलेगा।मजदूर कारखानों से दूर फसल कटाई में लगे हुए हैं। लाई के लिए जरूरी धान की क्वालिटी भी महंगी पड़ रही है। ऐसे में लाई बताशा की खरीदी महंगी पड़ेगी, क्योंकि ऊंची दर पर ही काम करने के लिए मजदूर राजी हो रहे हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि जितनी संख्या में जरूरत है उतनी संख्या में मजदूर मिल ही जाएंगे। इसलिए बेरौनक दिखाई देता लाई-बताशा का बाजार हताश नजर आता है।
 *इसलिये महंगा लाई* …..
लाई बनाने वाली मिलों में काम करने वाले मजदूरों को सामान्य श्रेणी में नहीं रखा जाता। केवल अनुभवी और कुशल हाथों की ही जरूरत पड़ती है इस काम के लिए, लेकिन शहर की अधिकांश मिलें अपने जाने-पहचाने मजदूरों की ही तलाश में है, इंतजार में है कि कब फसल कटाई पूरी होगी और अनुभवी मजदूर काम पर लौटेंगे। इसलिए उपलब्ध सीमित संख्या में कुशल मजदूरों की जरूरत पूरी करने के लिए बीते साल की तुलना में ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।
 *कम हो रहे बताशा बनाने वाले …* .
तकनीक के इस दौर में बताशा बनाने वाली यूनिटें महंगी है। दूसरा यह कि केवल दीपावली पर ही इसका बाजार रहता है। ऐसे में यूनिटों से काम लिया जाना महंगा पड़ेगा। इसलिए हाथों की ही मदद ली जाती है, लेकिन बताशा बनाने वाले हाथों की संख्या भी तेजी से घट रही है। इसलिए इन हाथों को काम के बदले ज्यादा पैसे देने पड़ रहे हैं। इधर बाजार बेहाल है, क्योंकि कोरोना की नजर इन दोनों पर भी लग चुकी है।

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