लॉक हुआ जनादेश: ‘ शिव ‘ राज ‘ कायम या ‘नाथ ‘ काबिज़ ?

0 अरुण पटेल
28 विधानसभा उपचुनावों में करोना संक्रमण के चलते हुए भी मतदाताओं पर इसका तनिक भी असर नहीं पड़ा और लगाए जा रहे अनुमानों के विपरीत मतदाता अपने घरों से निकले तथा बंपर मतदान किया। जनादेश ईवीएम में लॉक हो गया है और 10 नवंबर को सुबह तक इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि अनुमान चाहे कुछ भी लगाएं आखिरी फैसला तो वही होगा जो ईवीएम से निकलेगा। जनादेश से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राज करते रहेंगे या फिर से कमलनाथ प्रदेश की सत्ता पर काबिज होगें ? वैसे बढ़े हुए मतदान से कुछ भी अनुमान लगाना महज अंदाज़ होगा और वह पूरी तरह सही निकले यह जरूरी नहीं है क्योंकि मतदाताओं के मन की थाह आसान नहीं है। समुद्र की गहराई तो नापी जा सकती है लेकिन मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है इसे सही सही नापने का कोई सटीक पैमाना अभी तक ईजाद नहीं हुआ है। सभी सीटें जीतने का दावा भाजपा नेताओं द्वारा और पुनः सरकार बनाने का दावा कांग्रेस नेताओं द्वारा किया जा रहा है। दोनों दलों के दावे तो समझ में आते हैं पर बसपा भी दावा कर रही है वह 10 सीटें जीतने जा रही है और वही होगी किंग मेकर। बंपर मतदान को लेकर एवं कहीं-कहीं कम मतदान को लेकर अनुमानों के घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं लेकिन हकीकत यह है अधिक मतदान या कम मतदान जीत या हार की गारंटी नहीं होता है। लग गया तो तीर नहीं लगा तो तुक्का की कहावत अक्सर ऐसे मामलों में सटीक बैठती है। कई बार है देखने में आया है कि अधिकतम मतदान में भी सत्ताधारी दल जीता है और कम मतदान में भी। मतदान प्रतिशत के आधार पर पहले अनुमान लगाए जाते थे वह अब अतीत की बात हो गई है लेकिन अब इस तरह के अनुमान केवल टाइमपास का साधन भर रहते हैं उससे अधिक नहीं। जो जनादेश ईवीएम में लॉक हो गया है उसके बारे में दावे चाहे जो भी किए जा रहे हों लेकिन इस बात की पूरी संभावना है कि शिवराज सरकार चलती रहेगी क्योंकि उसे अन्य लोगों के समर्थन से साधारण बहुमत के लिए दो सीटें जीतना ही पर्याप्त है और भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए 9 सीटें जीतना जरूरी है, जबकि फिर से कमलनाथ सरकार की ताजपोशी के लिए कांग्रेस को वैसे तो सभी 28 सीट जीतना जरूरी है और यदि वह 22 के आंकड़े तक पहुंच जाती है तो फिर उसे कुछ संभावना नजर आ सकती है। भाजपा के सामने लक्ष्य इतना छोटा है कि वह आसानी से टहलते हुए पार कर लेगी जबकि कांग्रेस के सामने सीटें जीतने का हिमालयीन लक्ष्य है। चुनावों में चमत्कारों की हमेशा गुंजाइश रहती है और कांग्रेस भी ऐसा ही कुछ देख रही है और उसे भरोसा है कि बंपर मतदान इसलिए हुआ है क्योंकि मतदाता लोकतंत्र की रक्षा के लिए बिकाऊ लोगों को को सबक सिखाने घर से निकला है। अब यह बात तो 10 मई को ही पता चल सकेगी कि मतदाताओं ने बढ़-चढ़कर अपने मताधिकार का जो प्रयोग किया है उस जनादेश से शिवराज सरकार चलती रहेगी या फिर कांग्रेस सरकार की वापसी होगी और तब तक तरह -तरह के अनुमान लगाए जाते रहेंगे क्योंकि मतगणना तक तो इसी तरह से टाइम पास होना है। सट्टा बाजार अलग अनुमान लगा रहा है तो ज्योतिषी ग्रहों की दशा के आधार पर उसके उलट दावा कर रहे हैं इस प्रकार भाजपाई और कांग्रेसी जो बात जिसके के अनुकूल हो उसका आनंद लेते हुए टाइम पास कर सकते हैं।
उपचुनाव में मतदाता सामान्यतः मतदान के प्रति उदासीन रहता है इसीलिए 3 नवंबर को मतदाताओं ने जो उत्साह दिखाया उसको लेकर ही इस मतदान को असामान्य कहा जा रहा है जो लगभग 28 क्षेत्रों में 70 प्रतिशत के करीब हुआ। लेकिन यह मात्र उपचुनाव नहीं नहीं थे एक प्रकार से मिनी आम- चुनाव थे। उपचुनाव में सत्ता समीकरण पर कोई असर नहीं होता है चाहे नतीजे कुछ भी हों इसलिए उसमें मतदाता उदासीन रहता है लेकिन इनमें सरकार बनाने का बिगड़ने का अवसर था इसलिए बंपर मतदान हुआ। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 69.93 प्रतिशत मतदान हुआ है। 5 सीटों में 80 प्रतिशत के आसपास 12 सीटों में 70 प्रतिशत या उससे अधिक मतदान हुआ है। 60 प्रतिशत मतदान वाली 6 सीटें हैं तो वहीं 50 प्रतिशत के आसपास वाली 4 सीटें हैं तो एक सीट पर लगभग 40 प्रतिशत से अधिक और 50 प्रतिशत से कुछ कम मतदान हुआ है। मालवा इलाके में अधिक मतदान हुआ है तो ग्वालियर चंबल संभाग में कुछ सीटों को छोड़कर अपेक्षाकृत कम मतदान हुआ है। ग्वालियर पूर्व में तो सबसे कम मतदान हुआ है। अधिक मतदान ना तो सत्तापक्ष के खिलाफ माना जा सकता है और ना ही प्रतिपक्ष के समर्थन में माना जा सकता है। जहां तक 28 विधानसभा उपचुनावों का सवाल है तो यह परसेप्शन याने धारणा पर आधारित कहे जा सकते हैं और उस पर ही नतीजे आने की संभावना है। यदि सरकार की स्थिरता मतदाताओं के मानस में थी तो फिर भाजपा के पक्ष में उत्साहजनक चुनाव परिणाम आएंगे और उसकी अपेक्षा के आसपास हो सकते हैं और यदि मतदाताओं के मानस में कांग्रेस बिकाऊ बनाम टिकाऊ तथा जनता बनाम बिकाऊ की बात बैठ गई होगी तो फिर चुनाव नतीजे कुछ उलट आ सकते हैं।
और अंत में…………..
जब दावा करना है तो फिर उसमें कंजूसी कैसी, सबसे हवा हवाई दावा तो बसपा के प्रदेश अध्यक्ष रमाकांत पिप्पल का है कि हम 10 सीट जीतने जा रहे हैं और सरकार बनाने में हमारी किंगमेकर की भूमिका होगी। मात्र 18 सीटें उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के लिए छोड़ी जो सत्ता की असली दावेदार हैं। अब यह तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा की रमाकांत के दावे कितने सच के करीब और कितने हवा हवाई हैं। उनकी पार्टी उपचुनाव में खाता खोल पाती है या नहीं और मत प्रतिशत में उसके जो गिरावट 2018 चुनाव में आई थी उसे वह सुधार पाती है या नहीं तथा 2008 के चुनाव में पार्टी की जो स्थिति थी उसके आसपास पहुंचती है या नहीं?

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