अर्थव्यवस्था और सरकार का दावा

0 आपकी बात- संजीव वर्मा
इन दिनों देश की अर्थव्यवस्था जिस तरह से डगमगा रही है, वह चिंताजनक है। पहले कोरोना महामारी और उसके बाद युक्रेन-रूस युद्ध ने जिस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के सारे समीकरणों को बिगाड़ा है, उसकी वजह से निकट भविष्य में भारत की विकास दर प्रभावित होगी, यह तय है। पिछले हफ्ते भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से जारी सालाना रिपोर्ट का सार भी यही है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो स्थिति बिगड़ सकती है। इस बीच, कई रेटिंग एजेंसियों ने भी ग्रोथ अनुमान को घटाया है। मूडीज इंवेस्टर्स सर्विस ने भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) ग्रोथ अनुमान को घटाकर 8.8 फीसदी कर दिया है। पूर्व में उसने 9.1 फीसदी का अनुमान लगाया था। इससे पहले वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ, एडीबी और यूबीएस ने भी अपनी रिपोर्ट में पूर्व अनुमानों में कटौती की थी। वैसे इन सबके पीछे बढ़ती महंगाई सबसे बड़ा कारण है। महंगाई ही आर्थिक सुधार में रोड़ा बन रही है। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अर्थव्यवस्था में जो संकेत दिखाई दे रहे हैं, उनसे पता चलता है कि दिसंबर तिमाही में अर्थव्यवस्था में जो सुधार देखने को मिला था, वह इस साल के पहले चार महीनों में भी दिखा। हालांकि कच्चे तेल समेत अन्य क्षेत्रों में बढ़ता खर्च परेशानी का सबब बना हुआ है। इन चीजों पर बढ़ती महंगाई का प्रभाव डीजीपी ग्रोथ पर पड़ने की संभावना है। इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना का प्रकोप झेलने के बाद भी भारत की अर्थव्यवस्था में तेज सुधार देखने को मिल रहा है। अमरीका समेत दुनियाभर के देशों ने इसे दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था करार दिया है। लेकिन बढ़ती महंगाई इस पर अंकुश लगा रखी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले हफ्ते हैदराबाद में स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत जी-20 देशों में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। भारत ने स्टार्टअप के लिए अनुकूल माहौल उपलब्ध कराया है और कई अन्य उपलब्धियां हासिल की है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप परिवेश है। प्रधानमंत्री ने यह भी बताया कि वैश्विक खुदरा सूचकांक में भारत दूसरे स्थान पर है। निश्चित रूप से यह सब गौरान्वित करने वाली बात है। लेकिन अर्थव्यवस्था में हम कहां है यह देशवासियों को जानने का हक है। वास्तविक धरातल में देखें तो अर्थव्यवस्था हिचकोले खा रही है। केवल बातों से इस पर सुधार संभव नहीं है। कुछ करके दिखाना होगा। आरबीआई के सामने आज भी सबसे बड़ी चुनौती महंगाई ही है। खासतौर पर जिस तरह से थोक महंगाई की दर अभी काफी उच्च स्तर पर बनी हुई है। उससे कंपनियों के लिए कच्चे माल की लागत बढ़ेगी, ढुलाई का खर्चा बढ़ेगा और इसका सीधा असर आम जनता पर होगा। महंगाई की इस मौजूदा स्थिति के लिए काफी हद तक रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाई चेन व्यवस्था के बिगड़ने को भी जिम्मेदार माना गया है। लेकिन, केंद्र सरकार की नीतियां इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है और वह इससे इंकार नहीं कर सकती। वैसे आरबीआई महंगाई को थामने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। इसी महीने उसने खुदरा ब्याज दरों को प्रभावित करने वाले रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की वृद्धि की है। उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी 7 जून को होने वाली एमपीसी की बैठक में एक बार फिर वह नीतिगत दरों में इजाफा कर सकता है। बहरहाल, जिस तरह से अर्थव्यवस्था की स्थिति है उससे आम से लेकर खास तक परेशान हैं। हालांकि सरकार ने महंगाई से राहत दिलाने के लिए फौरी तौर पर कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन वह नाकाफी है। अब सबकी नजरें आरबीआई पर टिकी है। उम्मीद है कि वह महंगाई की मार पर अंकुश लगाने ठोस व कारगर उपाय करेगा।