आपकी बात: डॉयन से डार्लिंग बनता डॉलर….! 

० संजीव वर्मा 

देश में इन दिनों अमरीकी डॉलर को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। विपक्षी दल तो हाथ धोकर केंद्र सरकार के पीछे पड़ गए हैं। नारा लगाया जा रहे हैं ‘अब की बार 80 पार’। इस नारे में सच्चाई भी है। देश में पहली बार हमारा रूपया अमरीकी डॉलर के मुकाबले सबसे कमजोर 80 के पार हो चुका है। यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है। विदेशी मुद्रा का भी संकट खड़ा हो सकता है। रुपये के कमजोर होने से आयात खर्च बढ़ेगा और मुद्रा स्फीति को संभालना मुश्किल हो जाएगा। आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी और इससे व्यवसायों की निनिर्माण लागत बढ़ेगी, जो उस लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर डालेंगे। साथ ही कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रानिक उत्पादों तक का आयात, विदेशी शिक्षा, और विदेश यात्रा महंगी होने के साथ ही महंगाई की स्थिति और खराब होने की आशंका है। रुपए की कीमत में गिरावट का पहला असर आयातकों पर पड़ता है, जिन्हें समान मात्रा के लिए अधिक कीमत का भुगतान करना पड़ता है। आयातकों में सिर्फ तेल ही नहीं, मोबाईल फोन, कारें और उपकरण भी महंगे हो सकते हैं। विदेशी शिक्षा संस्थानों द्वारा शुल्क के रूप में छात्रों से वसूले जाने वाले प्रत्येक डॉलर के लिए अधिक रुपए खर्च करने की जरूरत पड़ेगी। वैसे भी केन्द्रीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि के बाद शिक्षा लोन भी महंगा हो गया है। प्रवासी भारतीय (एनआरआई) जो पैसा अपने घर भेजते हैं, वे रुपए के मूल्य में और अधिक भेंजेगे। यानी रुपए में गिरावट का चौतरफा असर पडऩे वाला है। आम से लेकर खास तक इसकी चपेट में आएंगे। इन सबके बावजूद केंद्र सरकार की चुप्पी समझ से परे है। लगता है इसकी जिम्मेदारी केन्द्रीय रिजर्व बैंक पर थोपकर वह कान में रूई डाल ली है। केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार 2014 में जब सत्ता संभाली थी तब एक डॉलर की कीमत 58 रुपए के आसपास थी। आज वह 80 के पार पहुंच चुकी है। यानी प्रति डॉलर 22 रुपए की बढ़ोत्तरी हुई है। 2014 में जब एक डालर की कीमत 58 रुपए थी, तब भाजपा ने केंद्र सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी। जमीन-आसमान एक कर रखा था। यहां तक कि मनमोहन सरकार को भ्रष्ट और गिरी हुई सरकार तक कहा था। लेकिन आज जब उसका समय आया तो तब की डॉयन डॉलर कब डार्लिंग बन गई पता ही नहीं चला। आज जो स्थिति है, उसके लिए कौन जिम्मेदार है? केंद्र सरकार और उनके नुमाइंदों को इसका जवाब देना चाहिए। केवल रूस-यूक्रेन युद्ध के नाम पर वह अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती। रुपए का भाव संभालने की भारतीय रिजर्व बैंक की कोशिशें भी नाकाम हो रही है। रुपए का मूल्य न गिरे, इसके लिए केंद्रीय बैंक फरवरी के बाद से अपने भंडार से 40 बिलियन डॉलर बाजार में डाल चुका है। इसके बावजूद रुपए का गिरना बदस्तूर जारी है। संभव है इस साल के अंत तक डॉलर की कीमत 82 रुपए तक पहुंच जाए। ऐसे में रुपए को संभालने की कोशिश में विदेशी मुद्रा भंडार को खाली नहीं करना चाहिए। स्वस्थ अर्थव्यवस्था वह होती है, जिसमें आयात बिल का भुगतान निर्यात से होने वाली आय और विदेशों में रहने वाले देशवासियों की वापस भेजी जाने वाली कमाई से हो जाए। विदेशी निवेश के जरिए आई रकम को इस पर खर्च करना बुद्धिमानी नहीं है। बहरहाल, देश में विपक्षी पार्टियां शोर मचा रही है। आम जनता महंगाई की आशंका से चिंतित हैं और केंद्र सरकार रुपए-रुपए करते हो… रुपए पर क्यों मरते हो… गुनगुनाते हुए चैन की नींद सो रही है।