आपकी बात: एक तीर-कई निशाने

0 संजीव वर्मा

देश के 15 वें राष्ट्रपति पद के लिए द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा के बीच मुकाबला होगा। भाजपा ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार घोषित किया है, तो विपक्षी दलों ने पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा को मैदान में उतारा है। जिस तरह से द्रौपदी मुर्मू को समर्थन मिल रहा है उससे लगता है कि उनका राष्ट्रपति बनना तय है। दरअसल,भारतीय जनता पार्टी ने उड़ीसा की आदिवासी महिला नेता और झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाकर एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं। उसकी नजर केवल राष्ट्रपति चुनाव पर नहीं बल्कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी है। उसने आदिवासी चेहरे को आगे बढ़ाकर ऐसा मास्टर स्ट्रोक खेला है कि विपक्ष भी हतप्रभ है।  भाजपा द्रौपदी के सहारे मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात और ओडिशा जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में जीत की नैया पार लगाना चाहती है। वह अनुसूचित जनजाति की महिला का नाम आगे करके राजनीतिक ही नहीं सामाजिक ताने-बाने पर भी सेंध लगाना चाहती है। जिसका असर पार्टी को आने वाले विधानसभा चुनावों में दिखना लगभग तय है। साथ ही पार्टी की छवि राजनैतिक ही नहीं बल्कि समाज में एक विशेष जाति समुदाय के लोगों को आगे बढ़ाने की भी बन रही है। देश की तकरीबन 11 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले आदिवासी राज्यों में भाजपा अपना वोट बैंक पुख्ता करने की तैयारी में है। आगामी डेढ़ सालों के अंदर जिन राज्यों में चुनाव हैं, यदि वहां के आदिवासी आबादी का आंकड़ा देखें तो मणिपुर में 41 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 34, त्रिपुरा में 32, झारखंड में 26.2, मध्यप्रदेश में 23 और गुजरात में 15 प्रतिशत है। यदि इन राज्यों में परंपरागत वोटों को आदिवासी समुदाय का साथ मिला तो भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान हो जाएगी। पिछले विधानसभा चुनावों में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों में भाजपा को मिली हार का मुख्य कारण आदिवासी वोट बैंक का पार्टी से मुंह मोड़ लेना था। छत्तीसगढ़ में तो आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर से भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है। वैसे राज्य की 29 विधानसभा और 4 लोकसभा सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है। ऐसा कहा जाता है कि राज्य की सत्ता इन्हीं क्षेत्रों से होकर गुजरती है। यहां यह बताना लाजिमी है कि आने वाले 3 सालों के भीतर 9 राज्यों के विधानसभा सहित लोकसभा के चुनाव भी होने हैं। ऐसे में भाजपा आदिवासी वर्ग को अपने साथ करने के लिए कई स्तरों पर जी-जान से जुटी है। राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी चयन भी इसी योजना का ही एक हिस्सा है। दरअसल भाजपा ने आदिवासी समाज की महिला को आगे करके राजनैतिक हलकों के अलावा समाज के गैर आदिवासी समुदाय में भी संदेश देने की कोशिश की है कि वह सभी समुदाय को समान रूप से प्रतिनिधित्व देने वाली पार्टी है। साथ ही उसने महिलाओं की सशक्त क्षमता को भी अपनी पार्टी से जोड़ने का प्रयास किया है। यह अलग बात है कि इसका आगामी विधानसभा और लोकसभा के चुनावों पर कितना असर पड़ेगा? बहरहाल, भाजपा ने तो अपना दांव चल दिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आदिवासियों की हितैषी होने का दावा करने वाली कितनी पार्टियां भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में अपना समर्थन देंगी। उड़ीसा के बीजू जनता दल और बिहार की जेडीयू (नीतीश) ने अपना समर्थन की घोषणा कर भाजपा की राह आसान कर दी है।