ज्ञानवापी: आस्था पर सवाल

0  संजीव वर्मा
देश में इन दिनों ज्ञानवापी मस्जिद का मामला चर्चा में है। सर्वोच्च अदालत ने मामला वाराणसी की जिला अदालत को स्थानांतरित कर दिया है। जिला अदालत ने सुनवाई शुरू भी कर दी है। अगली सुनवाई 26 मई को होगी। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि यह न समझा जाए कि मामले को निरस्त किया जा रहा है। आगे भी रास्ते खुले रहेंगे। शिवलिंग की सुरक्षा और नमाज की इजाजत देने का उसका 17 मई का अंतरिम आदेश बरकरार रहेगा। अदालत ने मुस्लिम पक्ष के वकील की दलील पर कहा कि धार्मिक चरित्र का निर्धारण वर्जित नहीं। मान लीजिए कहीं अग्यारी है। वहां क्रॉस जैसा निशान मिले तो वह जगह चर्च नहीं बनेगी। सर्वोच्च अदालत की इस टिप्पणी के बाद अब सभी पक्षों को समझ लेना चाहिए कि कोई कुछ भी कहे उसे अंतिम सत्य मान लेना उचित नहीं है। धैर्य के साथ मामले को आपस में सुलझा लेना चाहिए। वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है। ताजमहल और मथुरा में भी इसी तरह की याचिका दाखिल हो गई है। अब इस मुद्दे पर राजनीति भी शुरू हो गई है। राजनीतिक दल के नेताओं के एकपक्षीय बयान उचित नहीं है। एआईएमआईएम सुप्रीमो और सांसद असदुद्दीन ओवैसी और सपा सांसद बर्क के बयान धमकी भरे हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश में कानून सबके लिए बरकरार है। ऐसे में सभी पक्षों को संयम का परिचय देना चाहिए। आज देश गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और महंगाई से जूझ रहा है। महंगाई तो सारी सीमाएं पार कर चुकी है। आम से लेकर खास तक इसकी चपेट में है। पेट्रोलियम पदार्थों से लेकर खाद्य सामग्री तक के दाम आसमान छू रहे हैं। सामान्य खाद्य तेल आम आदमी की पहुंच से दूर होते जा रहा है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। दरअसल सत्ता के शीर्ष में बैठे लोग सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और धार्मिक भावनाओं को भड़काकर देश की ज्वलंत समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने में लगे हुए हैं, वे काफी हद तक इसमें सफल भी हो रहे हैं। इससे देश का ही नुकसान हो रहा है। सांप्रदायिक सद्भाव और भाईचारे की भावना तार-तार हो रही है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की जगह देश में घृणा का भाव पैदा किया जा रहा है। ईश्वर-अल्लाह सब एक ही है फिर इस तरह की वैमनस्यता क्यों। वैसे भी आज संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही है। सत्ता में बैठे लोग अपनी मनमर्जियां चला रहे हैं। हमारा मानना है कि सभी को देश के संविधान और कानून का सम्मान करना चाहिए। देश की संसद ने 1991 में उपासना स्थल कानून पारित किया था। उसमें प्रावधान किया गया है कि देश के तमाम पूजा स्थलों की 15 अगस्त 1947 को जो स्थिति थी, वही उनकी कानूनी स्थिति है। ऐसे में संविधान की शपथ लेकर चुनी गई सभी सरकारों का दायित्व है कि वे उन पूजा स्थलों की उन स्थितियों को बरकरार रखें। इसका पालन हर हाल में किया जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ या नहीं हो रहा है तो यह चिंता का विषय है। कानून की सर्वोच्चता और संवैधानिक मर्यादाएं किसी सभ्य समाज में स्थापित ही इसलिए की जाती है कि वहां शांति, भाईचारा, स्थिरता और विकास का माहौल बना रहे। यदि इसका उपहास होने लगे तो यकीन मानिए अराजक स्थिति बनने में देर नहीं लगेगी। ऐसे में सभी को देश के संविधान और कानून का सम्मान करना चाहिए। बहरहाल, अयोध्या में बाबरी मस्जिद के बाद एक बार फिर आस्था का बड़ा सवाल अदालत के सामने हैं। ज्ञानवाणी मस्जिद परिसर में शिवलिंग है या फौव्वारा इस पर अब अदालत को ही फैसला लेना है।