स्वतंत्र जिलाः अब बन रहा मुद्दा…जनप्रतिनिधियों की बेरुखी से संकट में मैदानी कार्यकर्ता

 

भाटापारा। भाटापारा को पृथक एवं स्वतंत्र जिला बनाए जाने का मुद्दा अब फिर से गर्म होने लगा है क्षेत्र की जनता पहले भारतीय जनता पार्टी की सरकार से उम्मीद लगाए बैठी थी परंतु उस समय सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया सन 2018 प्रदेश में सरकार बदल गई और बागडोर कांग्रेस के हाथ में आ गई तब से लेकर आज तक क्षेत्र की जनता कांग्रेसी सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रही है। परंतु अब क्षेत्र की जनता का भरोसा टूटता हुआ नजर आ रहा है साथ ही जनप्रतिनिधियों की बेरुखी से मैदानी कार्यकर्ता अब संकट में है। आखिर चुनाव के समय उन्हें भी जनता को जवाब देना होगा।

35 बरस पुरानी जिला बनाने की मांग, एक गंभीर मुद्दा बनता जा रहा है। इस मुद्दे को लेकर खैरागढ़ उपचुनाव के बाद जैसी गंभीरता दिखाई देती है, वह डेढ़ बरस बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी जैसी मानी जा सकती है। यह संकट, निष्ठावान कार्यकर्ता के घर बैठे जाने या हाथ का साथ छोड़ देने जैसी स्थितियों के रूप में दिखाई दे सकता है। स्थानीय कांग्रेस के पदाधिकारियों के सामने बड़ा संकट यह है कि अब सवाल पूछे जाने लगे हैं कि घोषणा तो की थी, कब पूरी करेंगे ?

जता चुके हैं सहमति

राज्य गठन के बाद प्रदेश के प्रथम गृह मंत्री रहे स्व.नंद कुमार पटेल पहले जनप्रतिनिधि थे, जिन्होंने न केवल इस मांग को सही ठहराया था बल्कि यह भी कहा था कि दोबारा जब भी सत्ता में आएंगे, जिला बनाने की भाटापारा की मांग जरूर पूरी की जाएगी। अब सत्ता में हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने भी इसे सही बताया है और समर्थन दे चुके हैं। प्रदेश की बागडोर संभाल रहे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी समर्थन दे चुके हैं। यक्ष प्रश्न, यह है कि आखिर कौन सी मजबूरी है, जो इस काम में बाधा डाल रही है ?

संकेत संकट का

एक के बाद एक बनते नए जिले को देखकर सवालों का उठाया जाना चालू हो चुका है। यह सवाल कांग्रेस के स्थानीय नेताओं तक पहुंच रहे हैं कि मौन क्यों हैं ? सवालों की जद में वह विपक्ष भी है जिसने 15 साल तक सत्ता की बागडोर थाम रखी थी। मौन रहना दोनों के लिए निश्चित ही भारी पड़ सकता है क्योंकि मात्र डेढ़ बरस बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। सवाल वोट मांगनें जाने वालों से भी पूछे जाएंगे। तब जवाब क्या होगा?

संकट इनके भी सामने

पार्टी चाहे कांग्रेस हो या फिर भाजपा। दोनों ओर ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता और नेताओं की कमी नहीं है, जो जिला निर्माण के पक्ष में है। जिन पर भरोसा किया जाकर वोट दिए जाते हैं। पूछेंगे ग्रामीण मतदाता कि स्वतंत्र जिला कब बनाएंगे तो जवाब शायद देते नहीं बनेगा। यह संकट ऐसे जनप्रतिनिधियों के सामने निष्क्रियता के रूप में सामने आने की प्रबल संभावना है।