दसहरा म काबर दिखय नही नीलकंठ

0 विजय मिश्रा‘अमित‘

‘‘नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध भात का भोजन करियों, हमरी बात राम से कहियों।‘‘ बालपन ले ये लोकोक्ति ल दसहरा के दिन अपन बड़े बुजुरग मन के मुंहु ले सुनत आवत हो। दसहरा के दिन नीलकंठ चिरई ल देखना सुभ माने जाथे। काबर की अइसे पौराणिक मान्यता हवय की भगवान राम हर नीलकंठ के दरसन करे के बाद रावन बध करे रहीस। नीलकंठ ला शंकर भगवान के चहेता चिरई केहे गे हवय। एला शंकर जी के रूप तको माने जाथे।
इही पाय के दसहरा के दिन नीलकंठ ल देखत ये लोकोक्ति ल दोहराय जाथे। अउ अपन दुखपीरा हरे के मनौती मांगे जाथे। फेर धीरे धीरे ये रिवाज हर अब नंदावत जावत हे। काबर कि अब नीलकंठ चिरई हर तको जादा नइ दिखय। दसहरा के दिन एखर दरसन पाये बर सहरिया मन हर गांव कोति जाथे अउ खार बन म नीलकंठ ल खोजथे।
दीखे मा बहुत संुदर नीला-भूरा रंग के पाॅख वाला चिरई नीलकंठ ला अंगरेजी मा ब्लू जे अउ इंडियन रोलर केहे जाथे। ये हर भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका म तको मिलथे। हमर देस भारत के बिहार, कर्नाटक, उड़ीसा, अउ आंध्रप्रदेश के राजपक्षी के दरजा नीलकंठ ल मिले हवय।
‘‘दसहरा के दिन नीलकंठ ल देखना सुभ माने जाथे’’ ये बिचार ल हिरदय म बइठारे-बइठारे नीलकंठ देखे बर भटकत मनखे मन ल एहु बात ले बिचार करना चाही कि आखिर ये सुन्दर चिरई अब काबर नंदावत हवय। नीलकंठ कस अउ दूसर कतको चिरई चिरगुन अब देखे बर नइ मिलय। एखर असली कारन रूख राई अउ जंगल के कटाइ्र्र के संगे संग धान अउ किसिम किसिम के अनाज के उपजोइया खेत ल अब पाट पाट के पलाट (भूखण्ड) म बदले के काम मनखे मन करत हवय। जादा ले जादा उपज पाय के फेर म अड़बड़ रसायनिक खातु अउ कीट नाशक दवा पावडर ल खेत म डारे जाथे। इही हर नीलकंठ कस चिरई मन बर जहर बन के जान लेवा हो गे हवय।
गांव हो कि सहर अब पक्का-पक्का घर मकान, सड़क बनत जावत हे। ते पायके चिरई चिरगुन मन ह अपन बसेरा बनाय के जगह अउ दाना-पानी बर तरसत हवय। अइसन पीरा झेलत चिरई चिरगुन के बंसज हर बाढ़े के बजाय घटत जावत हे। अउ नीलकंठ कस कतको किसिम के चिरई ल देखे बर अब मनखे मन हर तरसत हावंय।
अइसन बिकार के जनम देवोइया मनखे ल एंहु बात ल नइ भुलाना चाही कि किसान के मितान नीलकंठ अउ दूसर चिरई मन होथे। ए मन ह खेत म जामे फसल के नुकसान करोइया कीरा-मकोरा ल खा खाके फसल के रखवार कस काम करथे। ये अरथ म नीलकंठ हर किसान के भाग जगाने वाला, धन धान मे बढ़हर करोइया चिरई आय।
ये बात ल दसहरा तिहार म गुने के संगे संग जम्मो किसिम के चिरई के बंसज ल बढ़ाय अउ बाचे खुचे चिरई ल बचाय के उदिम ईमानदारी से करे के बात ल मन मे ठान लेना चाही। तभे मनखे के जिनगी म सुख के दिन बाढ़ही। साल भर में खाली एक दिन नीलकंठ के दरसन करके सुख सांति ल पाय के सोच ल बदले बर परहीं अउ चिरई मन के रहे बसे के ठौर ठिकाना ल बचाय-बढ़ाय के बीड़ा उठाना पड़ही।

Leave a Reply