कोल इंडिया के रवैये से छत्तीसगढ़ के उद्योगों पर संकट

रायपुर। कोविड-19 के दुष्प्रभावों को झेलने के बाद अब ऐसा लगता है कि देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि अलग-अलग सूत्र यह बता रहे हैं कि अगस्त 2021 में देश में बाजार खुलने के अच्छे संकेतों के बीच ऊर्जा की मांग में 17 फीसदी का उछाल आया है। जुलाई 2021 में ऊर्जा की मांग 200.57 गीगावॉट तक पहुंच गई जो अब तक का सबसे अधिक आंकड़ा है। वर्तमान में देश में बिजली की मांग 192-193 गीगावॉट के आसपास है। उद्योग जगत के लिए ये आंकड़े निश्चित ही राहत देने वाले हैं। हालांकि इन सकारात्मक तथ्यों के बीच कुछ अनचाहे आंकड़े ऐसे भी सामने आ रहे हैं जो न सिर्फ चौंकाते हैं बल्कि देश के औद्योगिक वातावरण के लिए बड़े खतरे की घंटी हैं। चिंता की बात है कि देश के कैप्टिव पावर प्लांट (सीपीपी) आधारित उद्योगों के सामने अप्रत्याशित रूप से कोयले का संकट खड़ा हो गया है।
बड़ा प्रश्न यह है कि उद्योगों के सामने ऐसी चुनौती आखिर कैसे खड़ी हो गई जबकि हमारी सरकार देश को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने को लेकर न सिर्फ मजबूत दिखती है बल्कि पूरी दुनिया के सामने देश की साख यह कहकर बनाई जा रही है कि भारत ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ वाला देश है।
छत्तीसगढ़ के लिहाज से बात करें, तो कोयला संकट की स्थितियां प्रदेश में पहले भी निर्मित हो चुकी हैं। विधायक धरमजीत सिंह तो वर्ष 2020 में एस.ई.सी.एल. के बिलासपुर स्थित मुख्यालय में जंगी धरना प्रदर्शन भी कर चुके हैं। प्रदेश के उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर कोयला उपलब्ध कराने संबंधी सवाल श्री सिंह विधानसभा में भी उठा चुके हैं। श्री सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ के लोगों ने अपना संकल्प दोहराते हुए कहा था कि प्रदेश के उद्योगों को संसाधनों की कमी के चलते किसी भी हालत में बंदी के मुहाने पर नहीं जाने दिया जाएगा।
दरअसल, एसईसीएल के खिलाफ किया गया प्रदर्शन कंपनी की इस मानसिकता के खिलाफ था कि जिस प्रदेश से वह कोयला निकाल रहे हैं, उसी प्रदेश के सीपीपी आधारित उद्योगों को वह प्राथमिकता के आधार पर कोयले की आपूर्ति करने में खुद को अक्षम बता रहे थे। परंतु छत्तीसगढ़ के नागरिकों ने यह बता दिया था कि राज्य के संसाधनों पर छत्तीसगढ़ की जनता का पहला अधिकार है और किसी भी सूरत में उनके इस अधिकार पर प्रदेश के बाहर के उद्योगों की सर्वोच्चता को स्वीकार नहीं किया जाएगा। एस.ई.सी.एल. प्राथमिकता के आधार पर प्रदेश के उद्योगों को उनकी जरूरत का पूरा कोयला देने के लिए बाध्य है।
तथ्यों के नजरिए से देश का 18 फीसदी कोयला छत्तीसगढ़ के पास है। यह लगभग 56 बिलियन टन के करीब है। देश के कोयला उत्पादन में एस.ई.सी.एल. की भागीदारी 25 फीसदी है जबकि उत्पादन लक्ष्य 165 मिलियन टन है। राज्य में औद्योगिक घरानों ने 65 हजार करोड़ का निवेश किया है। वर्तमान में लगभग 200 उद्योग कार्यशील हैं। उनके ताप आधारित कैप्टिव पावर प्लांट लगभग 4000 मेगावॉट बिजली बनाते हैं। इसके लिए उन्हें 26 मिलियन मीट्रिक टन कोयला चाहिए। एस.ई.सी.एल. के कुल उत्पादन का यह 16 प्रतिशत है जबकि जितना कोयला उद्योगों को चाहिए उसका 50 प्रतिशत भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
कोयले की कमी या कहें कि एसईसीएल की कार्य शैली का परिणाम, इस दफा कोल इंडिया ने एकतरफा निर्णय लेकर उपभोक्ता उद्योगों के साथ एफएसए का नवीनीकरण करने से साफ मना कर दिया है। उपभोक्ताओं से कहा गया है कि वे खुले बाजार से अपने लिए कोयले का इंतजाम कर लें। एसईसीएल यह तो कहता है कि एफएसए का नवीनीकरण न होने पर वह ई-ऑक्शन के जरिए उपभोक्ताओं को कोयला देगा परंतु हकीकत यह है कि एसईसीएल की ओर से ई-ऑक्शन की कोई भी तैयारी नहीं दिखाई देती।
एसईसीएल के फरमान के बाद अब छत्तीसगढ़ के कोयला आधारित कैप्टिव पावर उत्पादक उद्योगों के पास मात्र दो हफ्ते का कोयला बच गया है। अगर समय रहते एफएसए नहीं होता है छत्तीसगढ़ के कोयला आधारित उद्योग बंद होने की स्थिति में पहुंच जाएंगे।
यदि 10 से 15 फीसदी कोयले की आपूर्ति उद्योगों में बढ़ाने से राज्य को 200 करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष एवं 500 करोड़ रुपए का अप्रत्यक्ष कर अतिरिक्त राजस्व के रूप में मिल सकता है। राज्य में मूल्य संवर्धित उत्पादों के निर्माण के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण होगा। राज्य में निवेश बढ़ेगा और अधिक से अधिक ऐसे उद्योग पनप सकेंगे जिनके लिए कच्चा माल राज्य के उन प्राइमरी उद्योगों से ही प्राप्त होगा जो वर्तमान में बड़े पैमाने संचालित हैं। राज्य को लगभग 200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होगा वहीं छत्तीसगढ़ के नागरिकों के लिए रोजगार के एक लाख अतिरिक्त अवसर निर्मित होंगे।
कोयले के संकट से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इन उद्योगों से जुड़े पांच लाख से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी प्रभावित हो सकती है।
बहरहाल, छत्तीसगढ़ प्रदेश के सीपीपी आधारित उद्योगों के हितों की रक्षा हो, इसके लिए जरूरी है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल खुद आगे बढ़कर उद्योगों की परेशानियों को समझें और केंद्र सरकार को प्रदेश के उद्योगों के अनुकूल फैसले लेने के लिए तैयार करें।


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