क्या सिंधिया के सहारे कांग्रेस को सबक सिखाएगी भाजपा?

क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को बड़ा सबक सिखाने की रणनीति बनाई है यह मध्यप्रदेश विधानसभा के 24 उपचुनाव के बाद सामने आ सकता है। अभी तक मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रवेश को भाजपा की नजर से ही ज्यादातर देखा गया है। इसमें भी दृष्टि कांग्रेस सरकार को गिराने, भाजपा सरकार बनाने और प्रदेश में उपचुनावों के जरिए भाजपा को मजबूत करने तक सीमित दिखाई दी है। लेकिन यह अधूरा सच है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसा कांग्रेस की पहली पंक्ति का नेता यदि दल बदलकर भाजपा में प्रवेश करता है तो दृष्टि केवल उपचुनावों और प्रदेश तक सीमित नहीं होगी, ना ही इस दलबदल का मकसद केवल कांग्रेस को प्रदेश में सबक सिखाने तक सीमित होगा। प्रदेश में आगामी 24 उपचुनावों के लिए भी सिंधिया का दल बदल ही मूलतः जिम्मेदार है इसलिए भी अनुमान की दृष्टि उपचुनाव के नतीजे से भाजपा को मिलने वाले लाभ तक सीमित दिखाई देती है।यह सच भी पूरा नहीं है। असल राजनीतिक खेल उपचुनाव के नतीजे के बाद सामने आ सकता है। चूंकि दांव सिंधिया पर लगा है इसलिए सिंधिया के दलबदल पर इन उपचुनावों में जय-पराजय का असर भी देखा जाएगा। यदि 24 उपचुनावों में भाजपा को सबसे अधिक सीटें मिलती हैं और ग्वालियर चंबल क्षेत्र की 14 सीटों में से भी उसे सर्वाधिक सीटें मिलती हैं तो इस दलबदल को राजनीतिक रूप से सही मान लिया जाएगा। परंतु यदि ऐसा नहीं होता है तो सवाल भाजपा के भीतर से भी उठें तो अचरज की बात नहीं होगी। आने वाले दिनों में भाजपा की आंतरिक राजनीति का पहला स्टेज शो ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ही होगा। चूंकि यह इलाका सिंधिया रियासत का रहा है इसलिए भी यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक निर्णयों की परीक्षा सबसे अधिक होगी। शायद यही कारण है कि चंबल ग्वालियर के दिग्गज भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसी पद के लिए अपनी किसी महत्वाकांक्षा को दांव पर परखने के लिए नहीं लगाया। जहां तक उप चुनावों में जीत हासिल करने का प्रश्न है सर्वाधिक मंत्री पद फेरबदल में इस क्षेत्र को देकर भाजपा ने पूरी तैयारी की है, लेकिन अंतिम फैसला मतदाता का होगा। कांग्रेस को सबक सिखा देने के बाद सिंधिया का भाजपा में अगला लक्ष्य क्या होगा ? क्या केन्द्र में किसी विभाग के मन्त्री बन जाने से उनका मकसद पूरा हो जाएगा? क्या उनकी कोई और महत्वाकांक्षा नहीं है ? कांग्रेस में अपेक्षा अनुसार महत्व नहीं मिलने से पार्टी छोड देने वाले सिंधिया क्या भाजपा में अपनी अपेक्षाओं को पूरी करवाने की राजनीति नहीं करेंगे? मंत्रिमंडल विस्तार में अनेक स्थापित भाजपा नेताओं की हसरतों को रौंद्कर क्या उन्होने संकेत नहीं दे दिये हैं कि आगे भी ऐसा हो सकता है? सच यह है कि भाजपा ने इस अनूठे जोखिम के जरिए कुछ अनूठी चुनौतियां भी मोल ले ली हैं जिसमें उसकी अपनी मूल पहचान भी प्रदेश में दांव पर लग सकती है। देखना होगा कि कांग्रेस से आए नेताओं के हाथों इस पहचान की रक्षा वह किस प्रकार करवा पाती है। जहां तक पार्टी की आंतरिक स्थिति का सवाल है जैसा कि पहले इसी स्तंभ में कहा जा चुका है व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा सिद्धांतों और समझाईशो के ऊपर रहकर दिशा निर्देशन कर सकती है। यह अपने आप में एक अलग तरह की चुनौती होगी जिसका सामना इन चुनावों में और उसके बाद भी भाजपा को करना होगा। शायद इसी विष को फिलहाल पी लेने की बात शिवराज सिंह ने कही है। विरोधियों से ज्यादा भाजपा के भीतर सिंधिया की भावी राजनीति को लेकर इन्तजार होगा, यह तय है।

 योगी सरकार को आईना दिखाते अपराधी

कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जिनकी प्रकृति तो स्थानीय होती है लेकिन जिनकी धमक दूर-दूर तक, बल्कि पूरे देश में महसूस की जाती है। कानपुर में एक कुख्यात अपराधी को पकड़ने गए पुलिस दल पर भीषण हमला हुआ और आठ पुलिसकर्मी जान से हाथ धो बैठे। इनमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भी सम्मिलित हैं। पुलिस दल पर सुनियोजित ढंग से हमला किया गया और रणनीति बनाकर पुलिसकर्मियों की चुन- चुन कर बेरहमी से हत्या की गई। एक अपराधी का पुलिस बल से अधिक ताकतवर हो जाना और कानून से अधिक बेखौफ हो जाना अपने आप में उत्तर प्रदेश प्रशासन के लिए शर्म की बात है । घटना के बाद अपराधी का मकान गिरा देने, रिश्तेदारों की धरपकड़ करने जैसे कदम ना तो अपराधियों के हौंसलों को पस्त कर पाते हैं ना ही नए अपराधियों को पनपने से हतोत्साहित कर सकते हैं। कानपुर शहर में कुख्यात अपराधी विकास दुबे को गिरफ्तार करने पुलिस दल रात के अंधेरे में गया था। बड़े अचरज की बात है कि इस दल के पास ना तो पर्याप्त साधन थे ना ही अपराधियों का सामना करने के लिए पर्याप्त सक्षम हथियार ही थे। इस स्थिति के लिए कानपुर शहर के लिए तैनात वरिष्ठ और वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी भी पूरी तरह से जिम्मेदार हैं जिनका काम ही अपराधियों से निपटने के लिए पुलिस को सक्षम बनाना और उसे पर्याप्त मार्गदर्शन देना होता है। दोष तय कर दंडित करने की कारवाई उन्ही से शुरु की जानी चाहिये। कानपुर में इस भीषण हत्याकांड में दूसरी महत्वपूर्ण बात है, पुलिस दल के आने की सूचना अपराधी को पर्याप्त समय पहले मिल गई थी जिससे उसने सामना करने की पूरी रणनीति तैयार की और उसमें सफल भी रहा। यह प्रांतीय वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के मुंह पर तमाचा है। कानपुर शहर में शासन पर हुआ यह घातक हमला उत्तर प्रदेश में अपराधियों के हौसले को बुलंद करेगा और सुरक्षा बलों के मनोबल को तोड़ेगा। अपराधियों को सबक सिखाने की अनेक गंभीर चेतावनी देने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए इसे व्यक्तिगत चुनौती माना जाएगा और यह उनकी अपराधियों के हाथों एक शर्मनाक पराजय मानी जाएगी। अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई करने में पुलिस के भीतर छिपे घर के भेदिये इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि वरिष्ठ अधिकारी अपने दायित्वों पर सोते रहे हैं। जो स्थिति कानपुर में सामने आई है वह कमोबेश हर नगर में है। यह बात अलग है कि अन्य शहरों में ऐसी नौबत अभी नहीं आई हो लेकिन पुलिस के हालात, उसके अभाव, उसकी दुर्दशा और वरिष्ठ अधिकारियों की लापरवाही हर राज्य में हर नगर में इसी प्रकार तेजी से बढ़ती जा रही है। इसका एक बड़ा कारण राजनीतिक संरक्षण होता है। यहां पुलिस सुधार की बात करना इसलिए बेमानी है कि यह काम जो सालों साल से नहीं हुआ है, अब रातों-रात नहीं हो सकता है। फिलहाल बेहतर यही है कि पुलिस को राजनीतिक संरक्षण से पूरी तरह मुक्त किया जाए। उसे पर्याप्त साधन और हथियार दिए जाएं। उसे अपराधों की दृष्टि से उच्च प्रशिक्षण दिया जाए और गैर पुलिस कार्यों से उसे मुक्त किया जाए। यह संयोग ही नहीं है कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को ही पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को यह चेतावनी दी है कि यदि अपराध बढ़े तो अब पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी भी जिम्मेदार माने जाएंगे और उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।देखना होगा कि कितने पुलिस अधीक्षक इस कार्यवाही के घेरे में लाए जा सकेंगे।
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