चीन पर ‘डिजीटल स्ट्राइक’ और हमारा ‘डिजीटल राष्ट्रवाद’…

अजय बोकिल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रविवार को ‘मन की बात’ से साफ हो गया था कि लद्दाख में हमारी गलवान घाटी में घुसे चीन को सबक अब ‘राष्ट्रवादी तरीके’ से सिखाया जाएगा। इसी की अहम कड़ी के रूप में भारत ने चीन पर ‘डिजीटल स्ट्राइक’ करते हुए 59 चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंधित एप्स में ट्वीटर जैसा चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म‘वीबो’भी है, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वेरिफाइड अकाउंट है। इसके 2 लाख 40 हज़ार से ज़्यादा फॉलोअर्स बताए जाते  हैं। यह अकांउट मोदी ने पीएम के रूप में 2015 में अपनी पहली चीन यात्रा के पहले खुलवाया था। बदले की कार्रवाई करते हुए चीन ने भी हमारी न्यूज वेबसाइट्स और ई अखबारों पर बैन लगा दिया। चीनी एप्स पर यह ‘स्ट्राइक’ हमारी सीमा में घुसी चीनी सेना को वापस लौटने पर कितना मजबूर करेगी, कहना मुश्किल है, लेकिन इससे चीन थोड़ा चिंतित जरूर हुआ है। उसने चेतावनी दी है कि ‘राष्ट्रवादी तरीकों’ से चीन को झुकाया नहीं जा सकता। उसने अंतरराष्ट्रीय कानूनों की दुहाई भी दी है। समझने की बात यह भी है कि चीनी एप्स पर रोक से चीन को वास्तव में कितना नुकसान होगा, होगा भी या नहीं, खुद भारत पर इसका क्या असर होगा, और  क्या यह चीन की सैनिक दबंगई के मुकाबिल हमारे पास ‘लोकल’ व ‘स्वदेशी’ का हथियार है? क्या हम इस हथियार से चीन को उसके महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना पर आगे बढ़ने से रोक पाएंगे ? क्या इस डिजीटल स्ट्राइक का सकारात्मक असर  ‘डिजीटल राष्ट्रवाद’ के विस्तार में होगा ?

ध्यान रहे कि इसी स्तम्भ में दस दिन पहले यह सवाल उठाया गया था कि क्या हमारी युवा पीढ़ी चीनी माल के जाल से बाहर निकलने के लिए सचमुच तैयार है? क्योंकि दूसरे चीनी मालों के मुकाबले चीनी एप्स की  लत ज्यादा खतरनाक और गहरी है। भारत सरकार ने जिन 59 चीनी एप्स पर रोक लगाई है, उनमें प्रमुख हैं टिकटाॅक, हेलो, यूसी ब्राउजर, लाइकी, वी चैट आदि। भारतीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्वीट कर बताया कि भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के लिए इन एप्स पर प्रतिबंध जरूरी है। हम भारतीय नागरिकों के डेटा और निजता में किसी तरह की सेंध नहीं चाहते हैं। सरकार को शिकायत मिली थी ‍िक एंड्रॉयड और आईओएस पर ये एप्स लोगों के निजी डेटा में भी सेंध लगा रहे थे। इन पर पाबंदी से भारत के मोबाइल और इंटरनेट उपभोक्ता सुरक्षित होंगे। इस आदेश के बाद एपल और गूगल दोनों ने इसे अपने एप स्टोर से डिलीट कर दिया।

भारत में इन एप्स का बीते पांच वर्षों में जबर्दस्त चलन हुआ है। साल 2019 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में टिकटॉक के 30 करोड़, लाइकी के 18 करोड़, हेलो के 13 करोड़, शेयर-इट तथा यूसी ब्राउजर के 12 करोड़ के आसपास यूजर्स हैं। एप बनाने वाली ये कंपनियां चीनी हैं, जो हर साल भारत से अरबों रूपए कमाती हैं। इन चीनी एप्स के कुल मार्केट का एकजाई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, फिर भी जानकारों के मुताबिक इन चीनी कंपनियों की कुल कमाई का 40 फीसदी हम भारतीयों की जेब से जाता है। टिक टाॅक की मालिक ‘बाइट डांस’ ने ही इस साल भारत से 100 करोड़ कमाने का टारेगट रखा था। लिहाजा प्रतिबंध लगाने के बाद पहला‍ रिएक्शन उसी की तरफ से आया।  टिकटॉक ने अपने बयान में कहा कि वो भारत सरकार के अंतरिम आदेश को मानने की प्रक्रिया शुरू कर रही है। टिकटाॅक डेटा की निजता और भारतीय क़ानून के हिसाब से सुरक्षा ज़रूरतों का पालन करता है। हम भारतीयों का डेटा किसी भी विदेशी सरकार के साथ, यहां तक कि चीन सरकार के साथ भी साझा नहीं करते। बीबीसी के मुताबिक टिकटॉक इंडिया के प्रमुख निखिल गांधी ने कहा कि टिकटाॅक ने ‘इंटरनेट का लोकतंत्रीकरण’ किया है। यह 14 भारतीय भाषाओं में है। यह उनके लिए मंच है जिनकी प्रतिभा अनदेखी रह जाती है। बताया जाता है कि टिकटॉक सहित पांच चीनी कंपनियों  ने हाल में कोरोना से लड़ने पीएम केयर्स फंड  में 30 करोड़ रुपए का चंदा भी दिया था।

अब सवाल यह कि इस प्रतिबंध से चीनी कंपनियों को कितना नुकसान होगा? आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि इससे चीनी कंपनियों को नुकसान तो होगा। कानूनी दृष्टि से भी ये ठोस कदम है। क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों को अदालत में चुनौती देना मुश्किल है। मुद्दा यह भी है कि इन चीनी एप्स के बंद होने के बाद क्या भारतीय एप्स इसकी भरपाई करेंगे या फिर अमेरिकी एप्स हमारे बाजार पर कब्जा कर लेंगे। खबर है कि टिकटाॅक पर बैन के बाद इसके भारतीय विकल्प ‘चिंगारी’ एप को 72 घंटे में  5 लाख बार डाउन लोड किया गया। टिकटॉक के एक और देसी प्रतिद्वंद्वी ‘बोलो इंडिया’ एप को भी इसका फायदा मिल सकता है। एक और एप ‘रोपोसो’ की मालिकाना कंपनी इनमोबी ने बैन का समर्थन किया है। क्योंकि इससे उनके लिए भी भारत का बाजार खुलेगा। सोशल नेटवर्क शेयरचैट ने भी सरकार के इस क़दम का स्वागत किया है।

लेकिन इस तरह का डिजीटल बैन वास्तव में कितना कारगर होता है, इसके लिए सरकार के पिछले कदमों को भी जान लें। मोदी सरकार ने 2018 में देश में 827 पोर्न साइट्स पर रोक लगाई थी। लेकिन कुछ सयम बाद ही ऐसी नई वेबसाइट तैयार हो गईं। संभव है कि बैन के बाद इन चीनी एप्स का कोई अवैध वर्जन बाजार में आ जाए। हालांकि सरकारी कानून को न मानने पर कड़ी सजा का प्रावधान भी है। लेकिन इसकी चिंता कितने लोग करते हैं?

आजकल प्रतिक्रियास्वरूप की गई किसी भी कार्रवाई को ‘स्ट्राइक’ कहने का चलन है। इसमें एक राजनीतिक संदेश भी निहित होता है। ‘डिजीटल स्ट्राइक’ में भी चीनी एप्स को बंद कर उनकी जगह भारतीय अथवा गैर चीनी एप्स के इस्तेमाल का संदेश छुपा है। इसे हम ‘डिजीटल राष्ट्रवाद’ भी कह सकते हैं। चीन इसे तुरंत समझ गया इसीलिए उसके सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाइम्स’ के प्रधान संपादक हु चि जिन ने कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया कि ‘अगर चीन के लोग भारतीय उत्पाद का बहिष्कार करना चाहें तो वो कोई ऐसा उत्पाद खोज नहीं पाएंगे। भारतीय दोस्तो, आपको राष्ट्रवाद से आगे सोचने की ज़रूरत है।‘ इस बीच इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन ने कहा कि यह प्रतिबंध सेक्शन 69 ए के तहत जारी किया गया कोई क़ानूनी आदेश नहीं है। हमारा पहला प्रश्न पारदर्शिता और डिस्क्लोजर है।”

तो क्या डिजीटल स्ट्राइक भी डिजीटल राष्ट्रवाद को खाद पानी देने का कदम है? क्योंकि अंदरूनी तौर पर चीन के खिलाफ  सैनिक तैयारियां भले दिखाई जा रही हों, लेकिन भारत चीन को बेदखल करने सैनिक कार्रवाई करेगा, इसकी संभावना बहुत कम है। क्योंकि इस तनाव के दौरान भी भारत-चीन के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत चल ही रही है। कुछ हल निकलेगा, इसकी उम्मीद कम से कम भारत को तो है ही। समझने की बात यह भी है कि चीन जो कुछ दबंगई कर रहा है, वह भी ‘चीनी राष्ट्रवाद’ का ही हिस्सा है। चीन का यह राष्ट्रवाद साम्यवादी मुलम्मे में लिपटा है, जिसकी आत्मा पूंजीवादी चाशनी में गले तक डूबी है। यह राष्ट्रवाद पूरी दुनिया की आर्थिकी को अपने शिकंजे में जकड़ना चाहता है। भारत इसमें रोड़ा बन रहा है। चीन इसी कारण से बौखलाया हुआ है। लेकिन सौ टके का सवाल यह है कि आक्रामक चीनी राष्ट्रवाद को क्या हमारे डिजीटल स्ट्राइक, डिजीटल राष्ट्रवाद और ‘लोकल’ से तगडा जवाब दिया जा सकता है? क्या हम इन मामलो में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकते हैं? फिलहाल तो दुनिया उम्मीद पर ही टिकी नजर आ रही है।

वरिष्ठ संपादक

‘राइट क्लिक’

( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 1 जुलाई 2020 को प्रकाशित)

 

 

 

 

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